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अनुसन्धान ४५
श्रीश्रीवल्लभोपाध्यायप्रणीतम् । चतुर्दशस्वरस्थापनवादस्थलम्
म. विनयसागर
व्याकरण और न्यायशास्त्र आदि ग्रन्थों के कुछ कठिन विषयो पर शास्त्र चर्चा/शास्त्रार्थ/विचार-विमर्श करना यह विद्वानों का दैनिक व्यवसाय रहा है। किसी भी विषय को लेकर अपने पक्ष को स्थापित करना और प्रतिपक्ष का खण्डन करना यह कर्तव्य सामान्य सा रहा है । इसी प्रकार व्याकरण में स्वर १४ हैं, अधिक हैं या कम ?, इसके सम्बन्ध में श्रीश्रीवल्लभोपाध्याय ने चर्चा की और सारस्वत व्याकरण और अन्य ग्रन्थों के आधार पर १४ स्वर ही स्थापित किए । कवि-परिचय
अनुसन्धान अंक २६, दिसम्बर २००३ में श्रीवल्लभोपाध्याय रचित मातृका श्लोकमाला के प्रारम्भ में उनका संक्षिप्त परिचय दिया गया है। इनका
और इनकी कृतियों का विशेष परिचय जानने के लिए अरजिनस्तव: और हैमनाममालाशिलोञ्छ में मेरी लिखित भूमिका देखनी चाहिए । जन्म-भूमि
इस सम्बन्ध में काफी विचार विमर्श किया जा चुका है। श्रीवल्लभ राजस्थान के ही थे, यह भी प्रामाणित किया जा चुका है। व्याकरण जैसे शुष्क विषय पर अ.आ.का अन्तर बतलाते हुए सहजभाव से यह लिखना "आईडा बि भाईडा, वडइ भाई कानउ" यह सूचित करता है कि वे जिस किसी शाला/पाठशाला में पढ़े हों, वहाँ इस प्रकार का अध्ययन होता था, जो कि विशुद्ध रूप से राजस्थानी का ही सूचक है । अर्थात् श्रीवल्लभ (बाल्यावस्था का नाम ज्ञात नहीं) जन्म से ही राजस्थानी थे इसमें संदेह नहीं।
__ अनुसन्धान अंक २८ में श्रीपार्श्वनाथस्तोत्रद्वयम् भी प्रकाशित हुए हैं। जिनका कि इनकी कृतियों में उल्लेख नहीं था ।
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