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________________ सप्टेम्बर २००८ १०१ करी छे. अ ज रीते, बीजूं मग्नता अष्टक छे, तो ते मग्न पदना ज निक्षेपर्नु तेमज नयोनी दृष्टिले मग्न कोण तेनुं निरूपण बीजा अष्टकना प्रथम श्लोकमां जोवा मळे छे. अने आq प्रतिपादन अनेक स्थळे जोवा मळे छे. कोई पण मुद्दाने नय-निक्षेपनी दृष्टिथी तोलवा-मूलववानी श्रीमद्जीनी विलक्षण प्रतिभानो तथा स्याद्वादप्रीतिनो, आथी, अंदाज आवी शके छे. देवचन्द्रजी कोरा शास्त्रज्ञ नथी, पण अनुभवज्ञानी पण छे. श्रुतमय बोध तीव्र होवानी साथे साथे तेमनो भावनामय बोधना प्रदेशमां पण प्रवेश होवार्नु, तेमनां सहजभावे थये जतां, मार्मिक अने वेधक प्रतिपादनो परथी, कळी शकाय तेम छे. आने कारणे कोइ पण विषयनी विशद प्रस्तुति तेमने सहज छे. पोते ते ते प्रतिपाद्य मुद्दा परत्वे कोइ प्रकारना सन्देहनो के द्विधानो भोग नथी बन्या; स्पष्ट छे, अने तेथी तेमना द्वारा थतुं स्पष्ट प्रतिपादन आपणने पण असन्दिग्ध समजण आपी शके छे. अमनी अनुभवज्ञान-प्लावित वालीना थोडाक स्फुल्लिंगो अहीं नोंधीओ : - मग्नाष्टक (के मग्नताष्टक)ना पांचमा श्लोकमां भगवतीसूत्रना हवाला साथे तेजोलेश्यानी वृद्धिनी वात उपाध्यायजी महाराजे निरूपी छे. भगवतीजीमां केटला संयम-पर्यायवाळा साधुनी तेजोलेश्या केवी होय तेनुं प्रतिपादन आवे छे. ते केवा प्रकारना साधुने होय, तेनो खुलासो 'मग्नता'ना सन्दर्भमां 'इत्थम्भूतस्य' कहीने उपाध्यायजीओ आप्यो छे. पण श्रीदेवचन्द्रजी तेनुं विशदीकरण करतां, १. तेजोलेश्यानी व्याख्या अने २. सूत्रगत आ प्रतिपादन कोने लागु पडे तेनी चोखवट अटली सरळ-सहजपणे करी आपे छे के आपणा मनमां ते विषे कोइ ननु न च न रहे. जुओ १. तेजोलेश्या सुखासिका ॥ २. एतच्च श्रमणविशेषमेवाश्रित्योच्यते, न पुनः सर्व एवंविधो भवति ॥ आ ज प्रसंगमां तेमणे संयमस्थान-प्ररूपणा लंबाणपूर्वक करी छे, तेमां पण शास्त्रानुसारी एक मार्मिक विधान करीने प्ररूपणाने खूब विशद बनावी दीधी छे. आ रह्यं ते विधान : आदितः अनुक्रमसंयमस्थानारोही नियमात् शिवपदं लभते । प्रथममेव उत्कृष्ट-मध्यम-संयमस्थानारोही नियमात् पतति ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520545
Book TitleAnusandhan 2008 09 SrNo 45
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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