________________
निवेदन
- संशोधन एटले प्रवाहप्राप्त के परम्पराप्राप्त मान्यताओमा प्रवेशेल गरबडोनुं निवारण; तो क्यारेक, रूढ अने न मानवालायक गणाती बाबतोनुं समर्थन करवं ते पण संशोधन ज. संशोधन ए परम्परानु के पारम्परिक श्रद्धानुं विरोधी तत्त्व नथी. ते, खोटी के गलत धारणाओ पर मंडायेली मान्यताओ तथा रिवाजोने बदलवानो आग्रह जरूर सेवे छे, परन्तु तेनो स्वीकार न थाय तो ते - संशोधन - कोईना माथे चडी बेसतुं नथी; ते चूपचाप पोतानुं काम कर्ये जाय छे, निष्ठापूर्वक, प्रमाणिकपणे.
___दा.त. भगवान महावीरना विहारक्षेत्र विषे, इतिहासकारोए तथा पुरतत्त्वविदोए, शास्त्र, साहित्य, शिलालेख वगेरे सहितनां अगणित पुरावाओ तथा प्रमाणोनी गवेषणा करी छे, अने तेओ गुजरात-राजस्थान-सौराष्ट्रना प्रदेशोमां आव्या न होवानुं सिद्ध करी आप्युं छे. हवे परम्परागत श्रद्धा आ वात स्वीकारती नथी. ते तो आ बधा ज प्रदेशोमां भगवान महावीर आव्या होवानुं तेमज ते ते क्षेत्रमा विशिष्ट घटनाओ घटी होवानुं स्वीकारे छे. संशोधनने आनी सामे वांधो होई शके, कजियो नहि.
उत्तर गुजरातना वर्तमान 'बेणप'ने, केटलाक लोको, 'बेन्नातट' तरीके गणावीने तेने प्राचीन, ऐतिहासिक तीर्थ जेवं मानवा लाग्या छे. खरेखर पुरातत्त्वनी के इतिहासनी नजरे जोवामां आवे तो, बेन्नातट ए दक्षिण दिशा-- महाराष्ट्र बाजुनुं प्राचीन नगर छे, जेने उत्तर गुजरात साथे कोई ज सम्बन्ध नथी. बेणपने बेन्नातट मानवानी वृत्ति बहु जूनी भले न होय, पण बहु ज झडपथी ते रूढ परम्परामां फेरवाई जाय तो नवाई पामवा जेवू नहि होय.
संशोधन, ए हकीकतमां गरीब स्वभाववाळा बाळक जेवी चीज छे. ते परम्परा, खण्डन करता निष्कर्ष-सप्रमाण-आपी शके छे; पण तेनी साथे जो कजियो थाय तो ते हमेशां हारी जतुं होय छे. प्रा. मधुसूदन ढांकीना संशोधनात्मक ग्रन्थोनो दाखलो ते आनुं साव ताजुं अने श्रेष्ठ उदाहरण छे. पोताना ज शोध-ग्रन्थो, पोतानी हाजरीमा ज उपेक्षित बने, पोते इच्छे तो पण कोईने आपी के वहेंची न शके, अने तेनी सेंकडो नकलो-मळी शके तेम
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org