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अनुसन्धान ४४
पाखण्डीओ छे, छतां तेओर्नु केटलुंक अनुष्ठानादि बौद्धमतने सम्मत पण छे. ते छतां पण, तेओनी अशुद्ध दृष्टिने कारणे तेओर्नु समग्र दर्शन ज मिथ्या छे.''
छेल्ले, घणा जैन आगमोना पाठो साथे सादृश्य धरावता आगळ कहेला पाली आगमना पाठो तथा तेनी टीकाओ-कदाच, बौद्ध साधुओ तथा जैन मुनिओना कोई गणो वच्चेना वास्तविक सम्पर्कने जणावे छे. में मारा १९९५ना लेखमां जणाव्युं ज छे के - टीकाकार धम्मपाले जैन साधुओनुं जे वर्णन कर्यु छे ते शिल्पोमां मळतां वर्णनो साथे सम्मत छे - ते जणावे छे के बौद्धो काञ्चीमां रहेता जैनमुनिओना गणोने जाणता हशे. वळी, बौद्ध टीकाकारोना समय सुधी पण थेरवादी बौद्धो, जैनोना पञ्च महाव्रतोनी वात न करतां चातुयाम संवरने ज स्वीकारे छे -- ते आपणने एवं विचारवा - तर्क करवा प्रेरे छे के दक्षिणमां रहेल बौद्धोने एवा जैन मुनिओनो सम्पर्क हशे के जेओ त्यारे पण चातुयाम संवरने पाळता होय.
WARSAW INDOLOGICAL STUDIES - VOLUME 2, Essays in Jaina Philosophy and Religion Catuyama - Samvara in the Pali Canon लेखनो अनुवाद.
अनुवाद : मुनि कल्याणकीर्तिविजय
Dept. of S&SE Asian Studies University of California
7303 Dwinelle Hall Bekeley, CA 94270-2540
१. दीघनिकाय अट्ठकथा १ : १६८ । २. Jaini, Padmanabh S. : JAIN MONKS FROM MATHURĀ: LITERARY EVIDENCE FOR THEIR IDENTIFICATION ON KUSANA SCULPTURES.' Bulletin of the School of Oriental and African Studies [University of LONDON] 58 (1995) 479-494.
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