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________________ जून २००८ ११५ ते समये बुद्ध जे जवाब आपे छे ते थोडो आश्चर्यजनक छे. तेओ कहे छे, 'हा निग्रोध ! आ रीतनी तपस्या उच्चकक्षा तथा सारने पमाडे छे.' 'अने तेथी ज निग्रोध ! ज्यारे तुं मने पूछे छे के - "तमे तमारा शिष्योने क्यां (कई कक्षाए) तालीम आपो छो ? तमारा कया शिष्यो तमे प्ररूपेल साधधर्मना सिद्धान्तोने स्वीकारे छे?" त्यारे हं कहं छं के - "ते घणी उच्चकक्षा छे ज्यां हुं मारा शिष्योने तालीम आपुं छु, अने ते मारा शिष्यो साधुधर्मना सिद्धान्तोनो स्वीकार करे छे. "१ एक बौद्धेतर पन्थ पर बुद्धे आपेलुं आ एक सङ्क्षिप्त प्रमाण छे, अने आश्चर्य तो ए वातनुं छे के सुत्तना सङ्कलनकारोए पण चातुयाम संवरने क्षतिरहित मानी पोताना सिद्धान्त जेवो ज गण्यो छे ! वळी, वधारे उच्च अने अनुत्तर निर्वाणना पन्थ विशे कशुं कह्या विना ज आ सुत्त पूर्ण थई जाय छे, ते तो एथी य वधारे विस्मयप्रेरक छे. निग्रोध बुद्धनी निन्दा करवानो पोतानो अपराध स्वीकारी क्षमा मागे छे. त्यारे बुद्ध पण तेने कहे छे के - 'जे व्यक्ति प्रामाणिक, मेधावी अने सरल छे तेने हुं शिक्षण तथा मार्गदर्शन आपीश के जेनाथी ते अहीं अने अत्यारे ज उच्चधर्म अने परम ध्येयने पामी शके छे.' परन्तु निग्रोध के तेना शिष्योमांथी कोई पण आ पवित्र पन्थ पर चालवा तैयार नथी, कारण के, बुद्ध पोते ज कहे छे तेम 'प्रत्येक मूर्ख मनुष्य मार - दुष्ट तत्त्वथी आक्रान्त होय छे.' अने आ रीते बुद्ध एक पण व्यक्तिने प्रतिबोध्या विना नीकळी जाय छे, अने सत्र अहीं ज पूर्ण थई जाय छे, जाणे के चातुयाम संवरने बुद्धना अर्ध उपदेश तरीके कहीने अटकी जाय छे. आनो उकेल आ संवादना आरम्भने जोइए तो मळी जाय छे के बुद्ध सिंहनादनी जेम निर्भीकपणे कयुं छे के - 'ते बीजाओ द्वारा पूछायेल तपश्चर्या विषयक प्रश्नोनो उत्तर, पोताना सिद्धान्तोनुं वर्णन कर्या पहेला ज आपशे.' बुद्धनो आ विश्वास मात्र पोतानी उच्च बौद्धिक शक्ति पर ज आधारित नथी परन्तु पोते पोताना पूर्व जीवनमां बोधिसत्त्वरूपे आवां कष्टानुष्ठानो करी अनुभव मेळवेल छे १. दीघनिकाय ३:४९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520544
Book TitleAnusandhan 2008 06 SrNo 44
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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