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________________ जून २००८ जीवनना उच्च तपो विशे, स्वदमनना फायदा गैरफायदाओ विशे प्रश्नो पूछ. ' त्यार पछी बुद्ध अने निग्रोध बच्चे घणो लांबो संवाद चाले छे जेमां बुद्ध तेने कस्सपसीहनादसुत्तमां वर्णवेल तप व नी निरर्थकता समजावे छे अने कहे छे के 'देहदमनना बधा ज प्रकारो दोषपूर्ण छे अने पवित्र उच्च जीवनरूपी वृक्षनी छालने पण तेओ स्पर्शी शकता नथी तो तेना सारने तो क्यांथी पामी शके ?' निग्रोध पूछे छे उच्च कक्षा तथा तेना सारने पामी शके छे ?' - ११३ 'तो भदन्त ! कई रीते कोई साधु पवित्र जीवननी बुद्ध कहे छे - 'कोई साधु तपस्वी चातुयाम संवरथी संवृत्त थाय छे. चातुयाम संवर एटले, ते साधु २. ३. ते १. कोइने मारे नहि, मरावे नहि, मारनारनी अनुमोदना पण न करे; ते अदत्त ले नहि, लेवडावे नहि लेनारनी अनुमोदना पण न करे; मृषा बोले नहि; बोलावे नहि, बोलनारनी अनुमोदना पण न करे; अने ते इन्द्रियोना विषयोने अभिलेष नहि, अभिलषावे नहि, अभिलाषा करनारनी अनुमोदना पण न करे. ४. Jain Education International आ रीते ते साधु चातुयाम संवरथी संवृत्त थाय छे. १ अहीं ए नोंधवं जोइए के जैन परम्परामां हिंसा, मृषा, अदत्त - एवो क्रम छे ज्यारे अहीं हिंसा, अदत्त, मृषा...एवो क्रम छे. बीजुं, चोथा व्रतमां आवतो भावितं (नो भावितं आसीसति) शब्द बहु महत्त्वनो छे, अने आ सन्दर्भमां ते कोई जैन ग्रन्थमां जोवामां नथी आव्यो. आ शब्द पर टीका करतां बुद्धघोष अट्ठकथामां कहे छे के - 'जेओ आ चातुयाम संवरमां माने छे तेओना मते भावितनो अर्थ पांच कामगुणो छे, अर्थात् इन्द्रिय सम्बन्धी सुखना प्रकारो छे.' जो के, बौद्धोए अन्यत्र भावित शब्दनो 4 उपयोग कर्यो छे, छतां स्पष्टतया कहे छे के ' (कोइनो) राग होवो, अभिलाष होवो, तेनुं सतत चिन्तन होवुं ' व. अर्थोमां अहीं ते तेमनी परिभाषानो नथी. अहीं तो बुद्धघोष 'अहीं भावित शब्दनो अर्थ, जेओ चातुयाम संवरनो १. दीघनिकाय - ३:४८ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520544
Book TitleAnusandhan 2008 06 SrNo 44
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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