SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जून २००८ केवा टपार्या छे ते जुओ : 'उपशम, विवेक अने संवर' आ ३ पदोना अर्थने कोण नहि जाणतुं होय ? परन्तु आ ३ पदो सांभळीने चिलातीपुत्रने जेवू आत्मभान थयुं तेवू बीजा कोईने थयुं होय तेवू सांभळ्युं नथी ! (गा. ३) "तत्त्वनुं व्याख्यान घणा करे छे; सांभळे छे; जाणे छे ने माधुं पण डोलावे छे; पण रोमहर्षपूर्वक, ते थकी कोईनो मनोवेध थयो-थतो होय तेवू ज जोवा मळतुं नथी !" (गा. ६) "जे लोको बोले छे के 'हे लोको, प्रमाद-शत्रुने तमे बराबर छेतरजो, ताबे न थता; ते लोको ज प्रमादने परवश पडता जोवा मळे छे; हुं कोने शुं कहुं ?" (गा. १०) "वातो करती वेळाए 'बधुं अनित्य छे' एवं सह कोई बोले छे, पण हैयामां तेमने ते वातनो बोध थतो होय तेवू जणातुं नथी; अन्यथा, तेमना मनवचन-कायानां कृत्योमां साव विरोधाभास केम होय ?" (गा. १२) समकालीन मुनिजीवनना प्रमुख दोषोनुं वर्णन कर्ताए आ शब्दोमां कर्यु छे : "क्रीत दोष, आधाकर्म दोष, नित्य एकस्थानमा रहेवू, गृहस्थो पर ममत्व, विपुल परिग्रह- आ पांच साधुओने वळगेला दोषो छे. आमांनो एकेक दोष पण भारे छे, तो जेनामां ते बधा दोष होय, तेनी तो वात ज शी करवी ? जे साधु आ बधा दोषोथी पर छे, तेने मारो नमस्कार हो !" (गा. ३४-३५) गा. ३६मां कर्ता पारकी चिन्ता छोडीने पोतानी वात करवानी सूचना पोताने आप्या पछी, आगळनी थोडीक गाथाओमां पोतानी अंगत वात वर्णवे छे : "हुं पण आवो ज छु. परन्तु मारी टेक छे के शुद्धमार्गनी ज प्ररूपणा करवी; आथी हुँ संविग्नपाक्षिक बनीने मारी जातने धन्य अनुभवं छं. बीजा कोईने आ वातनी प्रतीति थाय के न पण थाय; पण मारो आत्मा तो आ वातमा साक्षी छे ज. मने एक ज वातनुं दुःख छ के हुं वाणीथी जे बोलुं छु ते प्रमाणे काया थकी लेश पण आचरण करतो नथी." (गा. ३७-३९). पोतानी घेरी मनोव्यथा व्यक्त करतां कर्ता एक हलावी मूके तेवी वात करे छे : “दिवस तो गमे ते रीते पसार थई जाय छे, पण रात वीताववी बहु कठिन पडे छे; मारा आत्मानु शुं थशे? तेनी तालावेलीमां - चिन्तामां,अल्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520544
Book TitleAnusandhan 2008 06 SrNo 44
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy