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________________ अनुसन्धान ४३ अञ्चलगच्छीय श्री जयकेसरीसूरि भास म. विनयसागर सद्गुरु आचार्यों और गीतार्थप्रवरों के गुणगौरव का यशोगान और स्तुति करना यह साधुजनों का कर्तव्य है । जो कि गीत, भास, स्तुति, रास, इत्यादि के रूप में प्राप्त होते हैं । गुरुगुण-षट्पद, जिनदत्तसूरि स्तुति, साहरयण कृत जिनपतिसूरि धवल गीत, कवि भत्तउ रचित जिनपतिसूरि गीत, पहराज कृत जिनोदयसूरि गुण वर्णन, कविपल्ह कृत जिनदत्तसूरि स्तुति, नेमिचन्द्र भण्डारी रचित जिनवल्लभसूरि गुरुगुणवर्णन, सोममूर्ति रचित जिनेश्वरसूरि-संयमश्री विवाह वर्णन, मेरुनन्दन रचित जिनोदयसूरि विवाहलउ आदि १२वीं शताब्दी के अनेकों कृतियाँ प्राप्त होती हैं । इसी शृंखला में अञ्चलगच्छीय श्री जयकेसरीसूरि से सम्बन्धित भास और गीत संज्ञक लघु चार रचनाएँ स्फुट पत्र में प्राप्त है। श्री जयकेसरीसूरि १५ वीं के अञ्चलगच्छीय प्रभावक आचार्य हुए हैं। श्री अञ्चलगच्छ की स्थापना आर्यरक्षितसूरि के द्वारा संवत ११६९ में हुई है । इसी आर्यरक्षितसूरि की परम्परा में श्री जयकेसरीसूरि हुए हैं। जिनकी वंशपरम्परा इस प्रकार हैं : आर्यरक्षितसूरि जयसिंहसूरि धर्मघोषसूरि महेन्द्रसिंहसूरि सिंहप्रभसूरि अजितसिंहसूरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520543
Book TitleAnusandhan 2008 03 SrNo 43
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages88
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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