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________________ अनुसन्धान ४३ योगीन्द्रसमुच्चयविरचित आनन्दसमुच्चयो नाम योगशास्त्रम् सं. विजयशीलचन्द्रसूरि (परिचय) समुच्चय नामना कोई विलक्षण योगी पुरुषे बनावेलो 'आनन्दसमुच्चय' नामनो योगशास्त्र-विषयक ग्रन्थ, कदाच प्रथमवार, अहीं प्रकाशित थई रह्यो छे. उपलब्ध मर्यादित स्रोतो थकी, आ ग्रन्थ तथा आ योगी विषे जाणकारी मेळववानो प्रयास निष्फल ज नीवड्यो छे. आम छतां, बे वातो निश्चयपूर्वक कही शकाय तेवी छे : १. आ ग्रन्थनी मारी पासेनी हाथपोथी अनुमानतः १५मा शतकनी जणाई छे, तेथी ग्रन्थकर्ता ते पूर्वे थया छ, अथवा ते पूर्वे आ ग्रन्थनी रचना थई छे, एम सिद्ध थई शके तेम छे. अने २. ग्रन्थकर्ता नाथसम्प्रदायना योगी-सिद्ध पुरुष छे तेवू, ग्रन्थारम्भे ज, कर्ताए ज, वर्णवेली गुरुपरम्परानांनामो जोतां समजी शकाय छे. प्रथम ए नामो ज आपणे नोंधीए : - १. बुद्धनाथ, २. चैत्यनाथ, ३. लोकनाथ, ४. संवर, ५. जालन्धर, ६. कृष्णनाथ, ७. रुद्र, ८. निरञ्जन, ९. कठमठनाथ, १०. परमाणुदेव, ११. समुच्चय (ग्रन्थकार). आमां प्रथम चार नामो वांचतां बौद्ध सिद्धो याद आवे. नामोमां पण बुद्ध दर्शननी छाप लागे. जालन्धर ते तो गोरख सम्प्रदाय के नाथ परम्परामां प्रसिद्ध नाम छे ज. कृष्णनाथ ते कान्हपा के कानीफनाथ साथे सम्बन्धित नाम लागे. . अलबत्त, ग्रन्थकार शुद्धतया योगमार्गना ज प्रवासी साधक छे, अने कोई खास धर्म के दर्शनमां बंधावेला नथी, तेनो ख्याल तो ग्रन्थना मङ्गलाचरणना पद्यथी तेमज अन्तिम प्रकरणमां छए दर्शनोनी योगपरकता जे रीते सिद्ध करी आपी छे ते परथी आवी जाय छे. ग्रन्थमा योगशास्त्र-सम्बद्ध विशिष्ट पदार्थोनुं विशद अने मार्मिक प्रतिपादन करवामां आव्युं छे. एy विवरण के तेनो परिचय आपवानुं काम तो योगमार्गना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520543
Book TitleAnusandhan 2008 03 SrNo 43
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages88
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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