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निवेदन
अनुसन्धान एटले संशोधन. तेनी विविध, अगणित शाखाओ छे. घणीवार, कोई एक मुद्दा विषे कोई निर्णय उपर आववा माटे, अनेक विषयोनी अनेक हकीकतो के प्रतिपादनोनो साथ लेवो पडे छे; क्यारेक तो साव अप्रस्तुत के विपरीत जणातो विषय पण तेमां खप लागतो होय छे. दा.त. कोईएक महत्त्वपूर्ण अने प्रसिद्ध जैन ग्रन्थकार आचार्यनो समय निश्चित करवा माटे, बौद्ध अने वैदिक दर्शनना ग्रन्थो, ते धर्मोना विद्वानोनो समय, तेमणे पोताना ग्रन्थोमां प्रतिपादन करेल सिद्धान्तो के पदार्थो, क्यांक पुरातात्त्विक उत्खननमां मळी आवेल कोई खास अवशेष, - आवां आवां अनेक साधनोनो खप पडतो होय छे. अने आवा अभ्यास पछी जे निष्कर्ष आवे, तेने कहेवाय संशोधन, अनुसन्धान.
केटलाक लोको मात्र कृतिसम्पादनने ज संशोधन तरीके स्वीकारीने चाले छे. तेमना मते, बीजी बधी बाबतो माटे परम्पराए निर्णय लीधेलो ज होय छे, तेने ज अनुसरवु उचित छे; परम्पराथी चाल्युं आवे ते खोटुं न होय. संशोधनना नामे घणां गप्पां के विकृतिओ प्रवेशे छे वगेरे.
व्यापक अने ऊंडा अध्ययननी तेमज ते माटेनी रुचिनी खामी अने तेथी ते विषे अनभिज्ञताने लीधे ज आवं एकांगी तथा संकुचित वलण आवतुं होय छे. थोडंक, पोताने न रुचतुं होय तेवू बरदास्त करीने पण, वांचनअध्ययनना फलकने विस्तारवामां आवे तो आवां वलणथी अवश्य बची शकाय.
संशोधन श्रद्धाविमुख करे तेवी धारणा साव भ्रान्त धारणा छे, एम अनुभवे कही शकाय. खरेखर तो संशोधनने परिणामे विकृतिओथी मुक्त परिवेश सुधी पहोंची शकाय छे, तेथी सत्य, तथ्यात्मक स्वरूप अनावृत थतां श्रद्धा वधु स्वच्छ अने बळकट बने छे.
- शी.
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