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डिसेम्बर २००७
नवां प्रकाशनो
१. ज्ञानसार : स्वोपज्ञ बालावबोध साथे; कर्ता : उपाध्याय श्रीयशोविजयजी, सं. आ. प्रद्युम्नसूरि, डॉ. मालती के. शाह; प्र श्रुतज्ञान प्रसारक सभा, अमदावाद, ई. २००७.
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एक महत्त्वपूर्ण अने उपयुक्त प्रकाशन. ज्ञानसार ए श्रीयशोविजयजीनी अमर तत्त्वज्ञानपरक रचना छे. 'गागरमा सागर' ए रूढिप्रयोग आ रचना परत्वे सर्वांशे सार्थक ठरे तेवी आ रचना छे. तेनां गूढ तात्त्विक पदार्थ - रहस्योनुं उद्घाटन करवानी आवश्यकता कर्ताने ज जणाई हशे, तेथी तेमणे पोतेज तेना पर बालावबोधक भाषा - विवेचननी रचना करी छे. तेनी समीक्षित अने अधिकृत वाचना प्रथम वखत आ ग्रन्थमां सम्पादको द्वारा उपलब्ध थाय छे, जे तत्त्वजिज्ञासुओ माटे उत्सवरूप घटना छे.
विभिन्न ११ जेटली हाथपोथीओनो आधार लईने आ सम्पादन करवामां आव्युं छे. मालतीबहेन शाहे स्वयं ज्ञानसारना तत्त्वचिन्तनने ज विषय बनावीने करेल अध्ययन पर Ph. D. मेळवेल होई, तेमने माटे आ बालावबोधनुं श्रमसाध्य सम्पादनकार्य ऊंडा रसनो तथा अभ्यासनो विषय बनी रहेल छे. सम्पादकीय निवेदनो, ज्ञानसारनो संक्षिप्त परिचय, उपयोगी अने अभ्यासपूर्ण परिशिष्टो थकी समृद्ध आ सम्पादनमां, श्लोक, तेनो बालावबोध अने ते पछी लोकभोग्य सरल भाषा (गुजराती) मां ते बन्नेनो सारगर्भित अर्थ आपवामां आवेल छे.
क्यांक अशुद्धिओ रही छे, जे खटके छे. दा.त. पहेला ज श्लोकमां 'लिलालग्नमिवाखिलम्', श्लोक २मां 'जात्यरत्नविभानि भा' इत्यादि. सरस, समृद्ध सम्पादन आपवा बदल सम्पादकोने साधुवाद.
२. पत्रमां तत्त्वज्ञान : ले. उपा० यशोविजयजी; विवरण : मुनि धुरन्धर विजयजी प्र. श्रुतज्ञान प्रसारक सभा, अमदावाद, ई. २००७.
उ. यशोविजयजीए लखेला बे तत्त्वज्ञानसभर पत्रो तथा तेना परना विशद विवरणनुं आ पुस्तक छे. आना प्रकाशनथी उपाध्याय श्रीजीना लखेला गहन पदार्थोनो ताग मेळववानुं अभ्यासीओ माटे सुलभ बनशे
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