SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८ अनुसन्धान ४२ पवनञ्जय को सहन नहीं हुआ। वह उसको मिलने गया । वहाँ अञ्जना और सखियों में विद्युत्प्रभकुमार की बातें चली थी। अञ्जना ने प्रतिवाद न करने के कारण चंचल वृत्ति का पवनञ्जय क्रोधित हुआ । रूठ कर सैन्यसहित कूच करने लगा । मातापिता ने समझा-बुझाकर विवाह रचाया । पहली ही रात में वह अञ्जना का तिरस्कार करके चला गया। बाईस साल तक अञ्जना शीलपालन करती हुई उसकी राह देखती रही । किसी कारणवश अचानक विरहव्यथा से व्याकुल पवनञ्जय सिर्फ एक रात के लिए अञ्जना के पास आया । उनका मिलन हुआ । किसी को सूचित किये बिना पवनञ्जय चला गया । गर्भवती अञ्जना पर पवनञ्जय के किसी स्वजन ने विश्वास नहीं किया। चारित्रहीनता का आरोप लगाकर उसे घर से निकाल दिया । अञ्जना के मातापिता ने भी धिक्कारा । अपनी प्रिय सखी के साथ घूमती हुई अञ्जना ने एक गुफा में बालक को जन्म दिया । गुफा में पधारे अमितगति मुनि के साथ अञ्जना ने बातचीत की । अपना दुःख बताया । मुनि ने पूर्वजन्म के बारे में कहकर सान्त्वना दी । अञ्जना के मामा अञ्जना की खोज करते हुए वहाँ पहुँचे । मामा उन तीनों को अपने हनुरुहपुर नामक नगर में ले गये । पवनञ्जय भी फिर से अञ्जना की विरह-व्यथा से व्याकुल होकर उसे ढूँढनेखोजने लगा । पवनजंय की खोज में निकले हुए मामा ने उसे देखा । दोनों हनुरुहपुर वापस गये । अञ्जना और पवनञ्जय का मिलन हुआ ।११ अञ्जनापवनञ्जयवृत्तान्त का प्रस्तुतीकरण करते समय विमलसूरि ने निम्नलिखित बातें ध्यान में रखीं होगी* 'वायु और 'केसरी' इन दोनों व्यक्तिरेखाओं के स्वभावविशेष एकत्रित करके विमलसूरि ने 'पवनञ्जय' का व्यक्तिचित्रण किया है । अञ्जना पर मोहित होना, अचानक उसके कक्ष में पधारना, बातें सुनकर क्रोधित होकर निकल जाना, विवाह कर के तत्काल परित्याग करना, बाईस साल दूर रहना, सिर्फ एक रात के लिए वापस आना, उसकी विरहव्यथा से व्याकुल होकर अन्नत्याग करना । इन सब घटनाओं की उत्पत्ति लगाने के लिए विमलसूरिने 'चंचलता' को पवनञ्जय के स्वभाव का १५. पउमचरियं, उद्देश १५, १६, १७, १८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520542
Book TitleAnusandhan 2007 12 SrNo 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages88
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy