SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६ अनुसन्धान ४२ के विवाह के विविध प्रस्ताव रखें । यद्यपि महेन्द्र विद्याधर रावण का सामन्त था, तथापि रावण तथा उसके पुत्र अनेक युवतियों के स्वामी होने के कारण उसने यह प्रस्ताव ठुकराया । विद्युत्प्रभ-कुमार विद्याधर थे । तथापि उनकी सांसारिक विरक्ति के कारण महेन्द्र ने यह प्रस्ताव भी नहीं स्वीकारा । प्रल्हाद और कीर्तिमती इस विद्याधर-युगल का पुत्र 'पवनञ्जय' राजा महेन्द्र को अञ्जना के लिए अनुरूप लगा । विवाह का प्रस्ताव मान्य हुआ । वाल्मीकि तथा विमलसूरि दोनों ने अञ्जना के अनुपमेय सौंदर्य का उल्लेख किया है। विमलसूरि ने उसे 'शापित कन्या' नहीं कहा है। कथानक रसपूर्ण होने के लिए अञ्जना के मातापिता, वरसंशोधन आदि के बारे में विस्तार से कहा है । अञ्जना को 'वानरी' न मानकर वानरवंश की विद्याधर कन्या कहा है। विमलसूरि के अनुसार रामायण के वानर पूँछवाले वानर प्राणी नहीं है। 'वानर' उनके वंश का नाम है और उनके ध्वजपर 'वानर' का चिन्ह' है। हनुमान के वानरवंश की समीक्षा करते हुए पं. श्री. दा. सातवलेकरजी ने भी अपनी किताब में विमलसरि के इस मत की पुष्टि की है । यद्यपि वाल्मीकि ने 'अञ्जना' को रूपपरिवर्तनविद्या की धारिणी माना है तथापि ७. पउमचरियं, उद्देश १५, गाथा क्र. १५-२७ ८. जं जस्स हवइ निययं नरस्स लोगम्मि लक्खणावयवं । तं तस्स होइ नाम, गुणेहिं गुणपच्चयनिमित्तं ॥ इक्खूण य इक्खागो, जाओ विज्जाहराण विज्जाए । तह वाणराण वंसो,वाणरचिंधेण निव्वडिओ ॥ वाणरचिंधेण इमे, छत्ताइनिवेसिया कई जेण । विज्जाहरा जणेणं, वुच्चंति उ वाणरा तेण ॥ पउमचरियं, ६.८६, ८९-९०। वानरजाति का बन्दरों जैसा वेष था । हनुमान जब रामलक्ष्मण से मिलने के लिए ऋष्यमूक पर्वत से नीचे उतरा तब उसने तपस्वी का वेष धारण किया । बाद में पुनः भिक्षु रूप छोड़कर वानर रूप धारण कर लिया । पृ. ४०४, श्रीरामायण महाकाव्य (पंचमभाग), किष्किन्धा-काण्ड, पं. श्रीपाद दामोदर सातवलेकर, सन् १९५२ ९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520542
Book TitleAnusandhan 2007 12 SrNo 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages88
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy