SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ डिसेम्बर २००७ समतारस केरु भण्डार, भविक जीवनिइ तारणहार । पाय नमी नर नारि वृन्द, गुरु श्री हीरविजय सूरिन्द ॥३॥ देह कान्ति दीपइ जिम भाण, मधुरी वाणी करइ वखाण । पडिबोहि सुर नर देविन्द, गुरु श्री हीरविजय सूरिन्द ॥४॥ चउदह विद्या गुण रयणनिधान, वाणी सयल सनाव्या आण । श्री विजयदानसूरीसर सीस, प्रतिपउ एह गुरु कोडि वरीस ॥५॥ (इति) श्री हीरविजयसूरि सज्झाय श्री विशालसुन्दर शिष्य रचित श्री हीरविजयसूरि सज्झाय श्री जिनशासन भासन भाणू, श्री गुरु गिरिमा गुणह निहाणु । श्री तपगच्छ रयणायर चन्द, प्रणमुं हीरविजयसूरिन्द ॥१॥ विनय करी तुझ प्रणमुं पाय, रायइ गच्छपति जिम सुरराय । विद्या गुणि जीतउ सुर इन्द्र, प्रणमुं हीरविजयसूरिन्द ॥२॥ जगि जयवन्तउ महिम निधान, जयकारी निरमल अभिधान । शास्त्र तणा तुं जाणइं वृन्द, प्रणमुं हीरविजयसूरिन्द ॥३॥ यम नियमादिक संयमवन्त, विनय विवेक धरइ भगवन्त । लक्षण लक्षित जस मुझ चन्द, प्रणमुं हीरविजयसूरिन्द ॥४॥ दान ज्ञान, आपइ सदा, जगि अपयश पसरइ नवि कदा । सुख सोहग वल्लीनउ कन्द, प्रणमुं हीरविजयसूरिन्द ॥५।। नयणानन्दन गुरु गुणधाम, यशपूरित गुरु निर्जितकाम । दरसणि भवीअ लहिइ आणंद, प्रणमुं हीरविजयसूरिन्द ॥६॥ सूत्र सिद्धान्त तणी परि लहि, सुधी विधि भवियणनइ कहइ । रंजइ बहु नर नारी नरिन्द, प्रणमूं हीरविजयसूरिन्द ॥७॥ रीस-रहित उपशम-भण्डार,रिपूर्जित मनि जन सुखकार । गुरु पसाइं लहुं परमाणंद, प्रणमुं हीरविजयसूरिन्द ॥८॥ इय सुगुणु सुहाकर परम क्षमापर, श्री हीरविजयसूरिन्द वरो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520542
Book TitleAnusandhan 2007 12 SrNo 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages88
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy