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________________ डिसेम्बर २००७ ४७ हर्षित हुआ । साह जिणदास के पुत्र साह कुंवरजी के घर आचार्य ने चातुर्मास किया । अनेक प्रकार के धर्मध्यान हुए । मासक्षमण आदि अनेक तपस्याएं हुई । अनेक मार्ग- भूलों को मार्ग पर लाये । भादवें के महीने में वहाँ के समाज ने अत्यधिक लाभ लेते हुए पुण्य का भण्डार भरा । तपागच्छाधिपति श्री आणन्दविमलसूरि के शिष्य विजयदानसूरि दीर्घजीवि हों । श्री लक्ष्मण एवं माता भरमादे के पुत्र ने दीक्षा लेकर जग का उद्धार किया । भीमकवि कहता है कि इनका गुणगान करने से संसार सागर को पार करते हैं। इससे ऐसे प्रतीत होता है कि आचार्यगण विशिष्ट कारणों से श्रावक के निवास स्थान पर भी चातुर्मास करते थे । रचना के शेष भाग में आचार्यश्री के गुणगौरव, साधना, तप-जपसंयम का विशेष रूप से वर्णन हैं । विजयदानसूरि के माता-पिता के नामों का उल्लेख तपागच्छ पट्टावली में प्राप्त नहीं है, वह यहाँ प्राप्त है । भक्तजन इसका स्वाध्याय कर लाभ लें इसी दृष्टि से यह भास प्रस्तुत किया जा रहा है। श्री विजयदानसूरि भास विणजारा रे सरसति करउ पसाउ । श्री विजयदानसूरि गाईइ गच्छनायकजी रे ॥वि. १ ॥ गुण छत्रीस भण्डार जंगम तीरथ जाण ॥वि. २ ॥ आव्यो मास वसन्त व्याहार विदेश गुरु करई ॥ग. वि. ३ ॥ जोया देश विदेश लाभ घणउ गुजर भणी ।।ग. वि. ४ ॥ मुगति थी के क... पूंजी पञ्च महाव्रत भरी ॥ग. वि. ५ ॥ पोठी वीस समाधि दुविध धर्म गुणी गुल भरी ॥ग. वि. ६ ॥ सुमति गुपति रखवाल ताहरइ आठइ साथी अति भला ॥ग. वि. ७॥ जयणा शंबल साथी जीता दाणी करवाय ते दोहिल्या ग.वि. ८॥ संवत् सोल बार नटपद्र नयर पधारिया ॥ग. वि. ९॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520542
Book TitleAnusandhan 2007 12 SrNo 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages88
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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