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डिसेम्बर २००७
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इस रचना को ऐतिहासिक रचना मानकर ही प्रस्तुत किया जा रहा
जय जिणशासण-गयणचन्द, तिहूअण-आणन्दण । जय जण-नयणानन्द-कन्द, मदमान-निकन्दण || उवझाया सिरि रायहंस-अवयंस भणीजइ । मुणिवर श्रीय अनन्तहंस-गुण किम्पि थुणीजइ ॥१॥
दक्षिणी ढाल ए सुणिवरू ए सोहमसामि नामिइ नवनिधि पाईइ । तुम दरिसणि ए परमाणंद सम्पद सुक्ख सकाराहीइं ॥२॥ तुम्ह गुरुअडि ए गुणह पमाण मेरु समाण वखाणीइ । तुम्ह वयणला ए अमीय कलोल सोल कला ससि जाणीइ ॥३॥ तुम्ह सूरति ए सहजि सुरंग अंग अग्यार मुखिइ धारइ । एह आगम ए छंद पुराण जाणपणइं जणमण हरइ ॥४॥ तपगच्छि दीपिइ मयण जीपइ माण माण मोह निराकरइ । आदिल ऋषि आचार अनुपम सुपरि संजम मनि धरई ॥ आषाढ़ जलधर सधरधार धोरणी जिम विस्तरइ । वरिसन्ति वाणी सरस को नरवर समुभर झिरि मिरि झडि करइ ॥५॥
राजा वल्लभभाषा धन धन ईडर नयर नाह लीलापति हिन्दु पातसाह । नव कवित विनोद कला सुजांण रंजविउ यस भुपति राय भाण ॥६॥ गुरु महिमा महिमण्डलि अनन्त गुरु दिनकर अवनि... वन्त । गुरु तप जप सय संयम तेजवन्त गुरु पञ्चम कालि प्रतापवन्त ॥७॥ गुरि विनय विवेक समायरीयगुरि विज्जुवउ चअल केरिय । गणधर श्री जिनमाणिक्क-पाय तुढे तुम्ह आप्यउ ए पसाय ॥८॥ रागि णीरागता पुण तपगच्छपति सिय लखिमीसागरसूरि । हाँसी आणंद धना-वि.... अनन्तहंस उवझाय पद ठवणइ ॥ परिग युगति दाखी नव ए ॥९॥
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