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________________ परमकल्लाणहेओ(ऊ ) सत्ताणं । अचित्य शक्ति सहित ते अरिहंतादिक गुणी छई ज्ञानादिक गुणवंत रागरहित सर्वज्ञ परमकल्याणप्राप्त एहवा छई । परमकल्याणना कारण जीवोनें ते ते (हेते ?) । मूढे अह्नि (अम्हि ) पावे अणाइमोहवासिए अणभिन्ने भावओ हिआहिआणं अभिने सिया अहिअनिवित्ते सिआ हियपवित्ते सिआ आराहगे सिआ उचिअपडिवत्ति ( त्ती )ए सव्वसत्ताणं सहिअंति इच्छामि सुक्कडं इच्छामि सुक्कडं इच्छामि सुक्कडं । मूर्ख अमे पापवंत छु । ए विशिष्ट पुरुषोनी [आगे? ] अनादि मोहें करी वासित छु, अनभिज्ञ धुं परमार्थथी हिता [हित] प्रतिपत्ति करवानें, हितना अभिज्ञ- जांण थाऊं, अहितथी निवृत्त थाऊं, हितमां प्रवृत्त थाऊं, आराधक थाऊं, उचित - प्रतिपत्तिइं करीनई सर्व जीव संबंधिनदं स्वहित इच्छं छं सुकृत प्रति । त्रणवार ए पदनो पाठ ( स्वहित इच्छं छं सुकृत प्रतिं स्वहित इच्छं छं सुकृत प्रति) । अनुसन्धान ४२ एवमेयं सम्मं पढमाणस्स सुणमाणस्स अणुप्पेहमाणस्स सिढिली - भवंति परिहायंति खिज्जंति असुहकम्माणुबंधा । निरणुबंधे वाऽसुहकम्मे भग्गसामत्थे सुहपरिणामेणं, कडगबद्धे विव विसे, अप्पफले सिआ सुहावणिज्जे सिआ अपुणभावे सिआ । ए रीतें ए सम्यक् संवेगसार भणवा (ता) जीवनई, अन्य समीपथी सांभलतां जीवनैं, अर्थानुस्मरण द्वारायें अनुप्रेक्षानें करतो एहवानें, मंदविपाकतायै शिथिल थाय, पुद्गलनें ओसरवें परिहानि थाय आशयविशेषाभ्यांसद्वाराई मूलथी ज क्षय पामई, भावरूप अथवा कर्मविशेषरूप असुभ कर्मना अनुबंध क्षय पामतां शेष रह्युं असुभकर्म ते अनुबंधरहित थाय, भग्न छें सामर्थ्य जेहनुं विपाक प्रवाहनें आश्रईनें एहवुं अशुभकर्म थाय । अनंतरोदित सूत्रथी उपने शुभ परिणामें करीनें कटकबद्ध जिम विष मंत्रि - सामर्थ्य (मंत्रसामर्थ्ये) अल्पफल थाय तिम अल्प फल क० अल्पविपाक थाय, सुर्खे अपनय करवा योग्य अशुभ कर्म थाय, अपुनर्भाव अशुभकर्म थाय । तहा आसगलिज्जंति परिपोसिज्जंति निम्मविज्जंति सुहकम्माणु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520542
Book TitleAnusandhan 2007 12 SrNo 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages88
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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