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________________ October-2007 (दिगम्बरो पण कहे छे के भव्यत्वनी गुणवत्ता जुदा जुदा आत्माओमां भिन्न भिन्न होय छे अने ते काललब्धि व. ने आधीन छे. परन्तु तेओ आ मुद्दानो उपयोग श्वेताम्बरोनी जेम करता नथी.) निगोदजीवो तथा मोक्ष विशे यापनीय तथा दिगम्बरोनो मत आचार्य शिवार्यनी भगवती आराधना परनी यापनीय अपराजितसूरिनी विजयोदय टीकामां - भरत चक्रवर्तीना घणा पुत्रोए दीक्षा लीधा बाद ढूंका गाळामां ज मोक्ष प्राप्त कर्यो - तेवं निरूपण छे. (मरुदेवीनो तेमां कोई उल्लेख नथी.) ते ज ग्रन्थमां आगळ कां छे के - 'अनादिमिथ्यादृष्टि जीवो पण बहु ओछा काळमां-आराधनाना बळे - सिद्ध बनी शके. आत्मिक विकास माटे काल बहु महत्त्वनो नथी. केटलाय जीवो एक मुहूर्तमां ज संसारसमुद्रने तरी गया छे. भरतना वर्धन व. ९२३ पुत्रो नित्यनिगोदपणामांथी प्रथमवार ज त्रसत्व पामी ऋषभदेव पासे दीक्षित थई मोक्षने पाम्या छे.' आ निरूपण श्वेताम्बर आगमोमां कहेल - नित्यनिगोदमाथी प्रथमवार ज त्रसत्वने पामी सिद्धत्व मेळवी शकाय छे ए - वातने प्रमाणित करे छे. यापनीयो जो के आ वातने अनन्तकाळे थनारी के आश्चर्यरूप नथी मानता, वळी तेओ- मरुदेवीने श्वेताम्बरोए जे सरळताथी मोक्षप्राप्ति देखाडी छे ते रीते न मानता, व्रतग्रहण व. नी आवश्यकता उपर भार मूके छे. स्त्रीमुक्तिप्रकरणना कर्ता शाकटायन (यापनीय) ब्राह्मी-सुन्दरीराजीमती-चन्दना व.ना मोक्षनी वात करे छे पण मरुदेवीना सिद्धत्व अथवा मल्लिना तीर्थंकरत्वनो उल्लेख करता नथी. संभवित छे के मरुदेवीना प्रसंगनी आगमबाह्य होवाथी तेमणे नोंध लीधी नथी अथवा श्वेताम्बरोए जे रीते तेमनो मोक्ष मान्यो छे ते तेओने मान्य नथी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520541
Book TitleAnusandhan 2007 10 SrNo 41
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages70
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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