SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुसन्धान- ४० जो विजयसिंहसूरि, देवभद्रसूरि धनेश्वरसूरि की परम्परा में हैं । इनका समय १२वीं शताब्दी है । ३. देवभद्रसूरि - चन्द्रगच्छीय, शान्तिसूरि, देवभद्रसूरि, देवानन्दसूरि की परम्परा में हैं । सत्ताकाल १३वीं शती है । ४. देवभद्रसूरि - मलधारगच्छीय श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य हैं । और संग्रहणी वृत्ति इनकी प्रमुख रचना है । समय १२वीं शताब्दी । ५. देवभद्रसूरि - पूर्णिमापक्षीय विमलगणि के शिष्य हैं । दर्शनशुद्धिप्रकरण की टीका प्राप्त है जिसका रचना संवत् १२२४ है । ६. देवभद्रसूरि - राजगच्छीय अजितसिंहसूरि के शिष्य है । इनकी प्रमुख रचना श्रेयांसनाथ चरित्र है और इनका सत्ताकाल १२७८ से १२९८ है । साहित्य में इन छः देवभद्रसूरि की उल्लेख प्राप्त होता है । क्रमांक २ और ३ की कोई रचनाएँ प्राप्त नहीं हैं । क्रमांक ४-५ जैन प्रकरण साहित्य के टीकाकार हैं और क्रमांक ६ कथाकार हैं । क्रमांक २-६ तक इस स्तोत्र के प्रणेता हों सम्भावना कम ही नजर आती है । मेरे नम्र विचारानुसार इस कृति के प्रणेता श्री अभयदेवसूरि के विनेय ही होने चाहिए ।" देवभद्रसूरि खरतरगच्छविरुद धारक श्री जिनेश्वरसूरि के शिष्य उपाध्याय श्री सुमतिगणि के शिष्य हैं । इनका दीक्षानाम गुणचन्द्रगणि था । आचार्य बनने के पश्चात् देवभद्रसूरि के नाम से प्रसिद्ध हुए । श्री अभयदेवसूरि के पास इन्होंने शिक्षा-दीक्षा एवं आगमिक अध्ययन किया था इसीलिए गणधरसार्द्धशतक बृहद्वृत्तिकार सुमतिगणि और खरतरगच्छ गुर्वावलीकार श्री जिनपालोपाध्याय ने अभयदेवसूरि के पास विद्या ग्रहण करने वाले और उनकी कीर्तिपताका फैलाने वाले शिष्यों का उल्लेख करते हुए लिखा है सत्तर्कन्यायचर्चार्चितचतुरगिरिः श्रीप्रसन्नेन्दुसूरिः, : सूरिः श्रीवर्धमानो यतिपतिहरिभद्रो मुनीड्देवभद्रः । १. महावीर स्वामीके स्तवमें पांच ही कल्याणककी बात है, ६ की नहीं; अतः यह कृति किसी अन्य गच्छ के देवभद्रसूरिकी हो यह अधिक सम्भवित है । शी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520540
Book TitleAnusandhan 2007 07 SrNo 40
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages96
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy