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________________ जुलाई-२००७ ४१ चकरडी भमरडी पीलि, भमरडा चकरडी नीली, कालि वंशी वेंण वाजें धनुषधोलि ॥१०॥ बोलतो बालुडो बोलें, माडी साथे मांडें राडि, मरकडलो देइ मागें सुखडी बहुल ॥११॥ सरीफल सेंघोडां छोलि, खलह खजुर भेलि, अखोड बदांम वछ दाडिमकलि ॥१२॥ खार्यक टोपरां-बहु, चारोलि चारवि सहु, साकरलिगां खरमां पुत्रनें कहुं ॥१३।। द्राख बें नीलि सुकी, खशखशमां खांड मुंकी, आवो रे अलवेशर वीरा रांमति मुंकी ।।१४।। काकरीयां तलशांकलि, गोलनी पापडी गलि, कुलेर तिलवट आलु गुंदस्यु तलि ॥१५॥ मेंठां आंबारस घोलि, खांड केलां घृत भेलि, रायण फणस वत्स आएं नि कोलि ॥१६॥ धांणी चेंणा लिओ जिलुंआ, दुधे पच्या आतुं पुआ, पुंख में शेलडीशांठा लिओ जिजुआ ॥१७॥ कमलकाकडी कुलि, चोला में मगानि फलि, आंबांनि कातलि पस्तां आलु जी छोलि ॥१८॥ सुखडी रांयण सुकी, दुधमां शाकर झोकी, पंचामृत आदें शवि सुखडी मुंकी ॥१९॥ भणे मरुदेवी मात, आवो वत्स कहुं वात, हसीने हइयामां लि प्रथमनाथ ॥२०॥ हसी रमी भमी थाका, अंघोल करोने आता, उवारणां लिई मरुदेविअ माता ॥२१॥ चुआरस भरी कचोलि, मोगरेल चांपेल भेलि, केशरकपुर रोलि, देइ माय अंघोलि ॥२२॥ जलवट सोनातणी, बेंठा छे त्रीभोवनधणी, कस्तुरी जबा ति बांधी उगट घणी ॥२३॥ त्रांबाकुंडी जल भरी, नीरमल नीरगलि, हेम डोइलें नवरावें उलट घणें ॥२४॥ उवारणां इंडीपिंडी, भामणां लिइं मावडी, इशवन्न लुंण करें तेवतेवडी ॥२५॥ गंगोदक देवें दीधां, चरणोदक शवि लिधां, वस्त्र पेंरावि सवि कारज्य शीद्धां ॥२६॥ सुरयकोडिथी बहु, रूपें मोह्यां देव शहु, अंगनी स्यौभा एके जीभे स्युं कहुं ॥२७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520540
Book TitleAnusandhan 2007 07 SrNo 40
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages96
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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