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अनुसन्धान ३९
कविवर-श्रीहेमरत्नप्रणीतो
भावप्रदीपः [ प्रश्नोत्तरकाव्यम् ]
म. विनयसागर प्रश्नोत्तर काव्यों, प्रहेलिकाओं और समस्यापूर्ति के माध्यम से विद्वज्जन शताब्दियों से साहित्यिक मनोरंजन करते आए हैं। प्रश्नोत्तर काव्य आदि चित्रकाव्य के अन्तर्गत माने जाते हैं । अलङ्कार-शास्त्रियों ने शब्दालङ्कार के अन्तर्गत ही चित्रकाव्यों की गणना की है। चित्रगत प्रश्नोत्तरादि काव्यों का विस्तृत वर्णन हमें केवल धर्मदास रचित विदग्धमुखमण्डन में प्राप्त होता है, जिसमें ६९ प्रश्नकाव्यों का भेद-प्रभेदों के साथ वर्णन प्राप्त है । उसको काव्यरूप प्रदान करने वाले कवियों में जिनवल्लभसूरि (१२वीं) का मूर्धन्य स्थान माना जाता है । उनके ग्रन्थ का नाम 'प्रश्नोत्तरैकषष्टिशतक काव्य' है । सम्भवतः इसी चित्रकाव्य-परम्परा में अथवा जिनवल्लभ की परम्परा में हेमरत्नप्रणीत भावप्रदीप ग्रन्थ प्राप्त होता है ।।
कवि हेमरत्न पूर्णिमागच्छीय थे । हालांकि भावप्रदीप में गच्छ का उल्लेख नहीं किया गया है किन्तु अन्य साधनों से ज्ञात होता है । हेमरत्न द्वारा स्वलिखित प्रति में आचार्य का नाम देवतिलकसूरि लिखा है । (पद्य ११८) । किन्तु अन्य प्रति में आचार्य का नाम ज्ञानतिलकसूरि भी मिलता है । इसके द्वितीय चरण में कुछ अन्तर है किन्तु तृतीय और चतुर्थ चरण के पद्य ११८ के समान ही है। यह ग्रन्थ 'नर्मदाचार्य' की कृपा से लिखा गया, किन्तु यह नर्मदाचार्य कौन है ? शोध का विषय है । हेमरत्न के गुरु पद्मराज थे । गोरा बादिल चरित्र में इनको ‘वाचक' शब्द से सम्बोधित किया गया है । सम्भव है बाद में ये उपाध्याय बने हो । हेमरत्न के सम्बन्ध में और कोई इतिवृत्त प्राप्त नहीं होता है ।
इस काव्य की रचना विक्रम संवत १६३८ आश्विन शुक्ला दशमी, के दिन बीकानेर में की गई । (प्रशस्ति पद्य १)
इस भावप्रदीप की रचना बच्छावत गोत्रीय श्रीवत्सराज की परम्परा
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