________________
ओप्रिल-२००७
कृष्णागर अंबर मृगमदस्युं भेली तिम घनसारो । धूप प्रदीप दशांग करतां चौदमी पूजा भव तारो... धूपी० ॥२॥
धुप कृष्णागर, अंबर अनई साथे वली कस्तुरी स्युं भेली, तिम वली कपूर, एहवो धूप, तथा प्रदीप । दशांग धूप करवो, वली तिम कपूरनो दीवो करीनइं, एहवी भविजनइं धूपपूजा, वली दीवानी पूजा करतां, सासग धुप करतां थिकां, चौदमी पूजा करतां भव-संसार पार ऊतारो । कुण ? एहवी चउदमी पूजाना फलथी ॥१४॥
इति आरती मंगलदीवानी चौदमी पूजा ॥
एतलाई इति श्रीआरती मंगलदीवानी चौदमी पूजा पूरी कही, लिखिता च । श्री गुरवे नमः ॥१४॥
हवई पनरमी पूजा त्रिवेणी रागई गाथा-बंधई गीतनी पूजा कहीयै छ ।
राग - त्रिवेणी गोडी, गाथाबंधई ॥ गगननुं नही जिम मानं, तिम अनंत फल जिन गुंणगानं तान मान लयस्युं करि गीतं, सुख दिइं जिम अमृत पीतं ॥१॥
त्रिवेणी रागें कहीस, गोडी त्रिवेणी गीयतई गाथाबंधैं । जिम गगन कहतां आकाशनुं मान-प्रमाण नही-अनंत आकाश माहइ, तिणे दृष्टांते जिनेश्वरना गुंण गातां अनंत फल छई । श्रीजिनवरना गुण, तेहना गीतनुं तान-मान-लय ए त्रिण्येनुं एकत्र करीनइं जे गीत गाँवq तेहनें घणुं सुख आपइ अरिहंतनी भक्तिनुं गीत । जिम अमृत पीधुं सुख दीइं तिम जिनभक्तिनुं गीत अमृत शरीवू सुख दीइं ॥१॥ वेणु वंश तल तालमुवगई, सुरत राखि वरतंति मृदंगई । जयतमान पडताल एकतालुं, आयति धरी प्रभु पातिक मा( गा)लो ॥२॥
वीणा-वंश, हस्तताल-कंठ(कर)ताल, वीणा-सरणाइ, हाथनी ताली, कंसाल, बीजाई तंतिना वाजां ते उपांगइ, बीजा तांतनां वाजीत्र मन धारणा १२२. धुप कृष्णागर० ब. । १२३. कस्तुरीनो धुप भेलवीनइं - ब. । १२४. गाई ब. ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org