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अनुसन्धान ३९
मननई मोहनहार धजा शोभावत छइं । जिम देवताइं ध्वज कीधो महेंद्र, चोस? इंद्रे समोसरणनी रचना करी, तिम भव्य जीव-भविजन-प्रांणी ध्वजानी पूजा करतां थकां जीवें स्यूं पून्य उपायुं ? मनुष्यना भवनुं फल लीइं, लाहो लीजीइं । तीर्थंकर पदवीनो लाभ पांमई ॥२॥
इति नवमी पूजा ध्वजानी ॥९॥
हवें गौडी रागई धवलनी देशी, दशमी पूजा ग्रहणानी कहे छै ।
राग-गोडी : धवलनी देशी । लाल वर हीरडा पाछि पीरोजडा विधि जड्या ए मोतीय नीलया लसणिया भूषणा तिहां जड्या ए॥ अंगद रयणनो मुगट कंठाउलि कीजीई ए काने रविमंडल सम जिनकुंडल दीजीइ ए ॥१॥
लाल-राता वर-प्रधान जे हीरा-रत्नजाति, तथा पाछि नीलरत्न पास प्रवाली, पीरोजा ते हीरा रत्नजातिविशेष जांणवा । ते साथे विधिस्युं जड्या कारीगरें मोतीयल-स्वेत वर्ण मुक्ताफल नीलकर इति नीले रंगई नीलूयानीलमणि लसणिया प्रसीध अभंग हीरा, इत्यादिकई ते रत्ननां भूषण ग्रहणइंवीतरागर्ने ग्रहणे जड्या छइं । एहवां अंगद-अंगना-बाहुनां भूषण एहवां तथा वली रत्ननो मुकुट, तथा वली कंठावली-गलानां भूषण, वली बीजां ग्रहणां । बें काननें विर्षे केवा कुंडल छै ? रविना मंडल सरीखां दीपतां कुंडल प्रभुने - जिनेश्वरनई वेहरावीइं - दीजई क. थापीइं ॥१॥
चंद्रमा-सूर्यसमान बे कुंडल जिननें कानें । इम इणि प्रकार आपीई "चंद्र रवि मंडल, सम दोय कुंडल, जिनतणइं कानि इंम दीजीइं ए".... ए पाठांतर ॥
हवें ग्रहणानी पूजा दशमी, तेहनो गीत तोडी रागई कहे छई ।
७२. सोभायमान ब. । ७३. लालवर हीरडां पास पीरोजका ब. । ७४. लसणीआ भूषणें ब. ।
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