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________________ 56 अनुसन्धान ३९ जे जिनवरनुं अंग सार बरास कपूरें पूरो, अनें आपणा दुरित चूरो । अथवा घनसारादिक महमूर चूरो। हे माता ! मननी आस्या पूरो, कर्मशत्रुं चूरो । माताजी ! श्री जिनेन्द्रना सरीरनें विषे सोभायमान एहवो सारो कपूर भिमसेंनी सकल सुख पूर्णे करै । सकल सुखनुं पूरण एहवुं जे चूरण तिणें करी चरिचित क० अरचा पूजा करो । कर्म शत्रुने टाले ते जिनन चर्चे । जिन तनुं सुरभर भर्युं ते जाणीई । आणंद - घमंडे करी मे सरीर भर्यू, आणंदने पूरई भविकें पोतानो आत्मा भर्यो छै | ॥१॥ 1 पावन गंधित चूरण भरस्युं मुंचति अंग उवंग | अष्टमी पूजा करत मन जाणती मेलावतीआ सुख - संगई पूरो० ॥ २ ॥ पावन क० पवित्र, गंधित क० गंध- सुगंध चूरण, तेहनई भरस्युं क० जे भरण भरीइं, तेणें करीने शोभे छई । केवूं ? मूंके । स्यूं ? प्रभुने अंग उपांगई मुंचति क० मूके- थापे । अथवा अंगउपांगई ए चूर्ण पूजोक्त छै ते भणी अंग उपांगना जे कर्म बांध्या तेनें मूकावई एहवीं आठमी पूजा करतो भविक मनमां जाणतां थकां, एहवां जे भव्य प्राणी मनमांहि इम जाणीइं छई, ए चूर्ण पूजा सुख-संगने मेलावती क० संयोग करती छ । तेहनें मेलावें मोक्षना सुखने एहवी वास पूजा छई एतले अष्टमी पूजा सुगंध चूरणनी कही चूर्ण वासनी संपूर्ण पूजा थई । ६४ इत्यष्टमी पूजा ॥ हवें नवमी पूजा ध्वजनी, गौडी रागें वस्तुयइ कहे छै जाफरतालनी जाति । वस्तु जाफरताल ॥ राग - गोडी, देवनिर्मित देवनिर्मित गगनि अतितुंग धर्मधजा जन मन हरण | कनकदंडगत सहस जोयण, रणरणति किंकणी निकर । लघु पताक त नयन भूषण जिम जिन आगलि सुर वह ए । तिम निज धन अनुसारि, नवमी पूजा धज करी कहें प्रभु तु हम तारि ॥ १ ॥ ब. । ६४. आठमी Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520539
Book TitleAnusandhan 2007 04 SrNo 39
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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