SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अप्रिल-२००७ 51 एतलई ए छूटा फूलनी पांचमी पूजा थई ॥ हवै छट्ठी पूजा फूलनी मालानी देशाख रागें कहे छई : राग - देशाख ॥ चंपगासोग पुन्नाग वर मोगरा केतकी मालती महमहंती । नाग प्रियंगु शुचि कमलस्युं बोलसिरी वेलि वासंती ए दमन जाती ॥१॥ ___ चंपक वृक्षना चांपाना फूल पंचवर्ण, अशोकवृक्षनां फूल, नांगपुन्नाग वृक्षना फूल, वर-प्रधान मोगराना फूल, केतकीनां फूल, तथा मालतीनां फूल, सुगंध महकती, महमहाट करती दश दिशई, नाग वृक्षना फूल, प्रियंगुवृक्ष "पुप्फेसरसी प्रीयंग(प्रीयंगु)वन्नइंति" राजादनि पवित्र एहवां कमल साथइ-कमलनां फुल, शतपांखडी, सहस्रपांखडी, बोलसिरीनां फूल, कालुवरि वृक्षना वेलि, वासंती चमेलिनां फुल, दश दिशें मसमसाट करतां दमानाकनी जातिना-दमणो-मरुओ ए फुलनी जातिना फूल । कुंद मचकुंद नव मालिका वालको पाडलांकोल शुचि कुसुम गूंथी । सुरभि कुसुममाल जिन कंठि बेठी वदई भमर मिसि हो तुझे सुखी यमूथी ॥२॥ __ कुंद अनैं मचकुंद, रवि-धवल सुगंध-पुष्पनी जाति, तेना फूलनी माला, तेज नवमालिका नवी मालती फूलनी माला, ते जूहीनइं कहीइं । तथा कुसुमना गुछनें कहीइ, ते वली सुगंध पांनडा वेल प्रमुख, पाडलां-पाडला फूलनी माला गुंथी, जासुल, अंकोल वृक्ष-जातिना फुल, कोरंटकादि, ए सर्व गुच्छना जाति-शुचि कुसुम क० पवित्र कुसुम साथे गुंथीनइं, हार-लक्ष फूलनां टोडर गूंथी करीनइं, एहवां सुरभि क० सुगंध मनोहर जे फूल अनेक जातिना कुसुम, तेहनी माला जिननि - श्री जिनेश्वरनें कंठि थापई - आरोपी थकी शोभायमांन दीसे छइं । जिन कंठे बेठी कहे छई ती जाणीयइं । भमर गूंजारव करे छ, भमरना शब्दने गुंजारवनइं मिसि कहे छई । भविकनै ते कहे छे : अरे भव्यलोको ! तुमे जिननां चरण आराही-स्येवा करो । जे ए जिन ४१. आसोपालव ब. । ४२. मसमसाट करतां ब. । ४३. चेलनां ब. । ४४. कोल वृक्ष - ब. । ४५. फूल - ब. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520539
Book TitleAnusandhan 2007 04 SrNo 39
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy