SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जान्युआरी-2007 ढाल - ३ अंबरी ऊभे गाजें हो भटीआणी राणी वडचुइं - ए देशी भुवनपति तिहां सूरपति हो तव पहेंलो गढ रचना करें रूपानो पायार । कोशिसां सोवनमय हो तिहां फलके सुवृत्ताकारमें भवि सुणो एह वियार ॥१॥ चंद सूरय गह पमुहा हो प्रभु समुहा सूर जोइस मिली कंचनमय बीजो दूरंग। रयण कोशिसां सरिसां हो समश्रेणिं सोहें चिहुं दिशें त्रीजो रत्नमय सूरंग ॥२॥ चंद सूरय गह पमुहा हो प्रभु समूहा सूर जोइस मिली - ए आंकणी ॥ वेमाणिय सूरराय वर हो बहु मणीनां कोशीसां करें उंची भिंत धणुशत पंच। वित्थारपणे तेतीस धणुं हो अनें उपर बत्रीस अंगुल देव करें शुभ संच ॥३॥ चंद० षट्शत धनूषनें माने हो एक कोशनो त्रिण गढ विचे अंतरो रत्नमय पोलि तिहां च्यार । धरतीथी पावडीयां हो दस सहस ओलंघी आवतां तिहां रूप्यगढनी पोल द्वार ॥४॥ चंद० रूपाना गढनी पोलिथी हो समीभूई पंचास धणूं आगें पंच सहस्स सोपान । कंचन गढनी द्वारथी हो अवकमीइं पंचास धणूं वली तिहां पंच सहस निदान ॥५॥ चंद० रत्नगढना द्वार मुखथी हो मांहिं जातां तिन्नि __ सय धणू ए फरती समी भूमि । ते आगे गाउ एकनो हो मनोहर मणीपीठ कह्यो ते विचि देवछंदो सोम्य ॥६॥ चंद० नव नव में धणुं पुर्व पर छंडी हो दिल मंडी पीठ बीजो करें बेसें धणुं लंब पोहोलो तेम । उंचो जिनदेहनें मानें हो ते बेंसवानो मणीपीठ हुंइं वली सुणो भवि एम ॥७॥ चंद० तिहां चार द्वार उदारा हो अति सोहें त्रिण त्रिण पगथालीयां चार दिशें सिंहासन चार । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520538
Book TitleAnusandhan 2007 01 SrNo 38
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages78
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy