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________________ अनुसन्धान-३८ संपइ के ई सड्ढा अलद्धगुरुणो वयाइउच्चारं । कारिंति परजणाणं हीही धिट्ठत्तणं तेसिं ॥३७।। धम्मो दुवालसविहो सुसावयाणं जिणेहि पन्नत्तो । साहु-अभावा सो पुण इक्कारसहा हवइ तेसिं ॥३८।। इह अतिहिसंविभागो सुसाहूणं चेव होइ कायव्वो । सामननाणदंसणवुड्डिकए परमसड्ढेहिं ॥३९ ।। जे पुण सड्डाण च्चिय बारसमवयं पुणो परूविति । कारिंति य अप्पेच्छा ते णेयव्वा अहाच्छंदा ॥४०॥ केई सुबुद्धिनायं परिभाविय पन्नाविति उच्चारं । कारंति य सा सुंदरबुद्धी न हु होइ निउणमई ॥४१॥ जं पुण सुगुरुसमीवे सुबुद्धिणा गहिय-देसियं धम्मं । हेण समं समसीसी अलद्धगुरुणो न ते होइ ॥४२।। जे पुण अलद्धगुरुणो जहा तहा कारविंति उच्चारं । ते जिणमइ(य)पडिणीया न हुंति आराहगा कहवि ॥४३।। साहीणे साहुजणे गिहीण गिहिणो वयाइं जो देइ । साहुअवत्राकरणा सो होइ अणंतसंसारी ।।४४।। गिहिणो गिहत्थमूले वयाइं पडिवज्जओ महादोसो । पंचेव सक्खिणो जं पच्चक्खाणे इमे भणिया ॥४५।। अरिहंत सिद्ध साहू देवो तह चेव पंचमो अप्पा । तम्हा गिहत्थमूले वयगहणं नेय कायव्वं ॥४६।। जं सच्छंदमईए रएसु उच्चारिएसु पुण तेसिं । जइ कहवि होइ खलणा ता कह सुद्धी गुरूहि विणा ॥४७॥ लज्जाइ गारवेण इ बहुस्सुयमएण वावि दुच्चरियं । जे न कहंति गुरूणं न हु ते आराहगा हुंति ॥४८॥ कच्छमाईकिरिया सड्डाणं जाव अणसणं भणिया । साहुवयणेण किज्जइ अन्नो पुण किं वहइ गव्वं ? ॥४९॥ संपइ भणंति केई जीवा पावंति अस्सुयं धम्मं । सच्चं पुण ते मूढा सुयपरमत्थं न याणंति ॥५०॥ A Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520538
Book TitleAnusandhan 2007 01 SrNo 38
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages78
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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