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अनुसन्धान ३६
एक रचना आ अंकमां रजू करी छे. एकांत आत्मसाधक, सम्प्रदायातीत आनन्दघनजी सर्व पक्षोना आदरणीय हता अने छे. तेमणे विविध शास्त्रोनुं अध्ययन विशद रीते कर्यु हतुं, एटलुं ज नहि, अष्टसहस्री जेवा ग्रन्थy अध्यापन करावी शके एवी क्षमता धरावता हता ए तथ्य आ ऐतिहासिक पत्रमाथी सर्वप्रथम जाणवा मळे छे. 'सब जन सबदें साधे' एम कहीने शब्द अर्थात् पांडित्यने बाधक कहेनार आनन्दघनजी स्वयं शब्दनी दुनियामांथी पसार थया हता अने तेथी ज शब्दनी मर्यादा जाणी चूक्या हता, तेथी ज अशब्द तरफ वळवानो तेमनो अनुरोध वजनदार ठरे छे.
____ अष्टसहस्री भणावे छे, अर्धरात्रिनी वेळाए भणावे छे, घणी खुशीथी भणावे छे - आवी विगतो तेमना व्यक्तित्वनी नवी रेखाओ अनावृत करे छे. तेओ खरतरगच्छना हता एवी अनुश्रुति बहु जूनी छे, हवे तेमां आ उल्लेख उमेराय छे. शीलचन्द्रसरिजीए श्रीधर्मसागरोपाध्याय साथेनी घटनानो उल्लेख नोंध्यो छे ते पण सानन्द आश्चर्यकारक छे.
'अष्टलक्षी' ग्रन्थनी खूबीओ समजावतो श्रीविनयसागरजीनो लेख संस्कृतना अभ्यासीओ माटे रसप्रद बनशे. एक चरणना आठ लाख अर्थ केवी रीते थाय छे ते आ लेख वांचवाथी समजाई जाय छे.
तुलनात्मक संशोधन कार्य (Comparative study) नुं महत्त्व अथवा उपयोगिताथी आपणो श्रेष्ठिवर्ग अने अग्रणी मुनिवर्ग सुद्धां एटलो अपरिचित के पूर्वग्रहित छे के संशोधक विद्वानो द्वारा प्रस्तुत थता विचारो के तारणो परम्परागत मान्यताथी जूदा पडता जणाय तो ते वर्ग अस्वस्थ थई ऊठे छे. सद्भाग्ये मुनिवर्गमां पण हवे तुलनात्मक-समीक्षात्मक अभ्यासनां पगरण थयां छे. 'अनुसन्धान' जेवू संशोधन सामयिक एक आचार्य द्वारा सम्पादित थाय छे. पक्षीय दृष्टिथी नहि पण शुद्ध संशोधक-बुद्धिथी आवां पत्रोमां प्रगट थता लेखो के एवां पुस्तकोनी निःसंकोच समीक्षा थाय छे. आ बधुं आजना समय- ऊजळु पासुं छे. क्रमशः आ पद्धतिथी श्रमणवर्ग सुपरिचित थई जशे त्यारे घणी बधी वस्तुओ-वातोना ऊकेल आ दृष्टि संपडावी आपशे.
जैन देरासर नानी खाखर-३७०४३५
जि. कच्छ, गुजरात
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