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अनुसन्धान ३६
मुनीचन्द्रनाथनी वधु रचनाओ आ अंकमां प्रगट थई छे. ते काळना प्रबळ प्रवाहोनी असर केवी होय छे ते जाणवा - समजवा आवी रचनाओं दस्तावेजी साधननुं स्थान थई शके. जैन निश्चय नयनो सिद्धान्त, नाथ सम्प्रदाय, वैष्णव भक्ति, जैन क्रियामार्ग आ बधांनुं संमिश्रण कर्ताना जीवनमां थयुं छे अने ते आ रचनाओंमां ऊतरी आव्युं छे. कविनी आध्यात्मिक दृष्टि-रुचिने आसपासथी जे मळ्युं तेनी मर्यादा नडी छे. आ रचनाओनी भाषा काळनी दृष्टिए १८-१९मी सदीनी अने स्थळनी दृष्टिए अमदावाद - खंभात विस्तारनी जणाय छे.
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'चतुर्दश पूर्व पूजा' मां चौद पूर्वगत विषयवस्तुनुं निरूपण सुन्दर रीते थयुं छे. 'चोत्रीस अतिशय स्तवन' मां तीर्थंकरना चोत्रीस अतिशयोनुं वर्णन छे. बने कृतिओनो पाठ शुद्ध छपायो छे. 'दोधक बावनी' चिन्तन-मनननी रचना छे. दो. ३७मां 'निषर'ने स्थाने 'निपट' कल्पवानी जरूर नथी. 'सखर' ( सारो) नो विरुद्धार्थी 'निखर' शब्द मारवाडीमां छे. दो. ४३- 'पाख रतीनुं पान' छे त्यां 'पाखर तीनुं पान' वांचवानुं छे. भाग्यना दृष्टान्त रूपे आमां कह्युं के पुष्कल वृष्टि थवा छतां 'पाखर'ने त्रण ज पांदडा होय छे. दो. ४८ मां 'पवहे'नी जग्याए 'पर्व हे' जोइए ।
मानदत्त अने मेघा कृत स्तवन- सज्झायो प्राय: शुद्ध छपाई छे. थोडी वाचनभूलो जो के देखाय छे. पृ० ६२ 'आरती' मां 'नह चै' छे त्यां 'नहचै' वांचवं जोइतुं हतुं. नहचै - निहचै एटले निश्चे- निश्चयथी. पृ० ६२ - सुमतिनाथ गीतमां 'रास लेवें' छे, परंतु 'ख' ने बदले 'स' वंचायो छे. 'राख लेवें' अर्थात् बचावी ले. तुरीयां = घोडा. 'हसती हीं दरे' मां हसती = हाथी; 'हीं दरे' ने स्थाने 'हींडे रे' होवानो संभव छे.
आ अंकना सम्पादकीय निवेदनमां तथा ट्रंक नोंधमां NMM अर्थात् नेशनल मिशन फोर मेन्युस्क्रिप्ट्स विषे वेधक अवलोकनो छे. हस्तप्रतोनी नोंधणी करावी देवा मात्रथी तेनी सुरक्षानी खातरी मळी जती नथी. अवैध वेचाण-निर्यात अटके तेवी सचोट नियंत्रणा सरकार कदी करी शकवानी नथी. हस्तप्रतो जेमना माटे पूजनीय धार्मिक वारसो छे तेओ ज तेमनुं संरक्षण करी शके - चिन्ता सेवी शके. जैन भण्डारो मोटा भागे सुव्यवस्थित ज होय
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