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________________ 66 विहंगावलोकन - भावसभर अनु० ३५ नी प्रथम प्राकृत रचना 'वीतरागविनति' कल्पनासभर रचना छे. वीतरागनी वीतरागता ध्यानमां होवा छतां भक्तहृदय प्रभुनी पासे कृपानी अपेक्षा राखे ज छे, फरियाद कर्या विना रहेतो नथी. प्रस्तुत स्तोत्रमां विधविध रीते परमात्मा पासे अनुनयविनय - याचना - विज्ञप्ति करवामां आव्या छे. प्राकृतना अभ्यासीओ आ कृतिनो रस माणी शकशे. गाथा २ मां मं(हं) पछी भव वधारानो छे- लिपिकारना हस्ते प्रवेशी गयो छे. 'भवद्दुओ मं ( हं) किंपि जंपेमि' ए रीते १७ मात्रा पूरी थई रहे छे. अनुसन्धान ३६ Jain Education International उपा. भुवनचन्द्र बीजी कृति विख्यात गीतकार समयसुन्दरोपाध्यायनी संस्कृत रचना छे. विद्वत्तासभर अने इतिहासमूल्य धरावती आ रचना जैन श्रमणों द्वारा संस्कृत भाषानी समृद्धिमां केटलुं योगदान अपायुं छे ते जणावनार एक दृष्टान्तरूप सर्जन छे. ९९९ अक्षरोनो एक एवा चार चरणना महाकाय छन्द 'दण्डक'मां आनी रचना थई छे. आमां समायेली ऐतिहासिक-सामाजिक विगतोनी चर्चा संपादके विस्तारथी करी छे. मूल पाठमां क्यांक छन्दोभंग थतो जणाय छे. पृष्ठ १० 'नित्यमखण्डेन' छे त्यां रगण सचवातो नथी. पृ० ११ 'सद्यश: पुरपूरा' मां पण गरबड छे. त्रीजा चरणमां पृ० १३ 'प्रलब्धालक्षा:' अने 'प्रयोगेणाङ्गे' मां पण आवी ज स्थिति छे. संभवतः आमां लेखन दोष के वाचनदोष काम करी गयो हशे, दण्डक छन्द वेगवान छे, वर्णन बळवान छे, कविनी गुरुभक्ति उत्कृष्ट छे, भाषा प्रकृष्ट छे. आ अंकनुं नजराणुं कही शकाय एवी रचना छे- लाभानन्द ( आनन्दघन ) जी कृत बार भावना. सम्पादकजी ठीक ज कहे छे के कृतिमां कर्तानुं नाम न होवा छतां कृति आनन्दघननी ज छे ते निश्चित करी शकाय म छे. प्रतना अन्ते लाभानन्दजीनो उल्लेख छे ज. विषयनी रजूआत आनन्दघननी याद देवडावे ज छे. भाषाकीय दृष्टिए पाठ वधु शुद्ध थवो जरूरी छे- एम For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520537
Book TitleAnusandhan 2006 09 SrNo 37
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages78
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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