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________________ September-2006 रचना समय प्रणेता - इस कृति के निर्माता हरिकलश यति हैं । हरिकलश यति के सम्बन्ध में कोई भी ज्ञातव्य जानकारी प्राप्त नहीं है । इस कृति में स्वयं को राजगच्छीय बतलाते हुए धर्मघोषसूरि के वंश में बतलाया है । राजगच्छ की परम्परा में धर्मसूरिजी हुए हैं । यही धर्मसूरि धर्मघोषसूरि के नाम से प्रसिद्ध हुए । इनका समय १२वीं शती हैं । इन्हीं धर्मघोषसूरि से राजगच्छ धर्मघोषगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुआ । शाकम्भरी नरेश विग्रहराज चौहान और अर्णोराज आदि धर्मघोषसूरि के परम भक्त थे । यहाँ कवि ने धर्मघोषगच्छ का उल्लेख न कर स्वयं को धर्मघोषसूरि का वंशज बतलाया है । संभव है कि हरिकलश के समय तक यह गच्छ के नाम से प्रसिद्ध नहीं हुआ हो ! इसी परम्परा के अन्य पट्टधर आचार्य का भी उल्लेख नहीं किया है। प्रणेता ने रचना समय का उल्लेख नहीं किया हन् । साथ ही इस तीर्थमाला में धुलेवा केसरियानाथजी एवं महाराणा कुम्भकर्ण के समय में निर्मित विश्वप्रसिद्ध राणकपुर तीर्थ का भी उल्लेख नहीं किया है । अतः अनुमान कर सकते हैं कि इस कृति का रचना समय सुरत्राण अल्लाउद्दीन के द्वारा चित्तौड़ नष्ट (विक्रम संवत् १३६०) करने के पूर्व का होना चाहिए | श्लोक १४ में 'दुर्गे श्रीचित्रकूटे वनविपिनझरन्निर्झराद्युच्चशाले, कीर्तिस्तम्भाम्बुकुण्डद्रुमसरलसरोनिम्नगासेतुरम्ये' लिखा है। इसमें कीर्तिस्तम्भ का उल्लेख होने से महाराणा कुम्भकर्ण द्वारा निर्मापित कीर्तिस्तम्भ न समझकर जैन कीर्तिस्तम्भ ग्रहण करना चाहिए जो १३ - १४वीं शती का है । महाराणा कुम्भकर्ण का राज्यकाल विक्रम संवत् १४९० से लेकर १५२५ तक का है । इमें ईडर को भी मेवाड़ राज्य के अन्तर्गत लिखा है, ईडर पर अधिकार १३ - १४वीं शताब्दी में ही हुआ था । दूसरी बात इन स्थानों पर विशालविशाल ध्वजकलश मण्डित और शिखरबद्ध अनेकों जिनमन्दिरों का उल्लेख यह स्पष्ट ध्वनित करता है कि यह रचना चित्तौड़-ध्वंस के पूर्व की है । अतः मेरा मानना यह है कि इस कृति की रचना १४वीं शताब्दी के प्रारम्भ में ही हुई है । - Jain Education International - 39 हरिकलश यति संस्कृत साहित्य, छन्दः साहित्य और चित्रकाव्यों का प्रौढ़ विद्वान् था । व्याकरण पर भी इसका पूर्णाधिपत्य दृष्टिगत होता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520537
Book TitleAnusandhan 2006 09 SrNo 37
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages78
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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