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अनुसन्धान ३६
शरणागतने मोरो शत्रु पण कंई कही शकतो नथी. जुओ शंकरनुं वाहन होवाने कारणे नांदीने, पार्वतीनुं वाहन सिंह जाति शत्रु होवा छतां कांई ज करतो नथी. (६) अहीं कविओ एक मोटी वात कही के समर्थ ज, अन्य समर्थने सहाय करी शके छे माटे समर्थनो ज सम्बन्ध राखवो. सेंकडो नदीओ नहीं, पण मेघ ज पर्वतनां संतप्त देहने शीत- शाता आपी शके छे. (७) श्रेष्ठ संगथी कनिष्ठ पण गुणान्वित बने छे. मलयगिरि उपरनां निम्ब वगेरे वृक्षो चन्दन ज कहेवाय छे ने ?, (८) एटले उत्तमजननो संग करवो. भले ने लोखंडनी बनी होय पण ते वींटी ललनानी अंगुलिमां तो शोभे ज छे. तमारा अवगुणो सज्जनसंगे कां तो दूर थशे कां तो ढंकाई जशे (९) क्यारे पण अक्कड न थवुं, आपणी अकडाई तो थोडा ज दिननी महेमान होय छे, पछी तो समय जतां एवो झोल-झुकाव आवे छे के पाछा ऊभा थवुं पण मुश्केल लागे. (१०) जेनो संग करीओ तेनी चार बाबतोनी परीक्षा करवी १. माता - पितानी शुद्धि, २. खाणीपीणीनी शुद्धि, ३. नेत्रोनी निर्मलता, ४ मननी शुभइच्छाओ. जेनी आ चार वस्तु शुद्ध होय ते ज क्षीर-नीर विवेक करी शके छे. माटे राजहंस समान ए सज्जन जननी संगति योग्य छे. कारण के विवेकथी ज दोष नाश थाय छे. (११) बाकी तो कांटा जेवी जीभवाळानी सोबत बहु नठारी. बोर साथे भळवाथी ज, मोदकमां मिश्र थईने पोषक बनवानो गुणधर्म धरावतो गोळ, मदिरानी जेम मादक बनी जाय छे. (१२) आथी ज दुर्जननो संग त्याज्य छे केमके दुर्जन, कां तो अंगारानी जेम बाळे, कां तो कोलसानी जेम हाथ काळा करे. (१३) माटे तो लोको दुर्जन, वांका, वांकदेखाने नवगजनां नमस्कार करे छे. अहीं कविओ सरस रीते, 'चन्द्रबीज कला' नमनमां कारण रजू कर्तुं छे के 'अधुरी' छतां बीजनी चन्द्रकलाने बधा नमे छे, कारण के ते कुटिल वांकी छे अने पूनमनो चन्द्र सम्पूर्ण छतां कोई नमन करतुं नथी - कारण के सरळ छे. (१४) जो शरुआतमां कष्ट सहन करो, तो उच्चस्थाननी प्राप्ति अ तेनुं फळ छे. कुंभारनां टपलां खाई खाईने घडायेल घडो, नमणी रमणीना मस्तके शोभे छे. (१५) सर्वत्र गुण ज प्रधान छे. जन्म के जन्मस्थळ नहीं. 'जबाधि' जे मार्जार शरीरमां पेदा थाय छे. पण ते सुगंधि होवाथी बधा अने स्वीकारे छे. (१६) समर्थनो दोष कोई ना जुओ. - 'अर्धनारीनटेश्वर' शंकरने कोण निंदे छे ? अहीं याद आवे छे के. "समरथकुं
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