SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विजयशीलचन्द्रसूरि प्राकृतभाषानिबद्ध, १११ गाथाप्रमाण, आ तीर्थमालास्तव, तेनी अन्तिम गाथामां जणाववामां आव्या प्रमाणे, आ. मुनिचन्द्रसूरिनी रचना होवानुं जणाय छे. ते गाथामांनां ४ पदो सम्भवतः विशेषनामपरक छे, जे कर्तानी गुरुपरम्परा वर्णवे छे : महेन्द्रसूरि, भुवनचन्द्र (के भुवनेन्द्र ) सूरि, चन्द्रसूरि अने मुनिचन्द्रसूरि आ ४ नामो होवानुं समजाय छे. वस्तुपालकृत आबुतीर्थना जिनालयनी नोंध आ स्तवमां (गा. ९३) होवाने कारणे, आनो रचनासमय चौदमी सदी होवानुं मानी शकाय. स्तवकारनी गुरु- गच्छपरम्परा जाणवा माटे पट्टावलीओमां तपास करवानी रहे छे. जोके आ रचना विशे 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास' (मो.द. देशाई) मां कोई नोंध जोवा मळती नथी. - श्रीमुनिचन्द्रसूरिविरचित तीर्थमालास्तवः ॥ 'तीर्थमाला' प्रकारनी रचनाओमां, भारतवर्षमां तथा समग्र ब्रह्माण्डमां ज्यां पण जिनप्रतिमा होय तथा जैन चैत्य होय; जिन - तीर्थंकरना जीवननी 'कल्याणक 'नी के अन्य विशिष्ट घटना कोई स्थानमां घटी होय; अथवा कोई विशिष्ट कारणे कोई खास स्थलने 'तीर्थ' तरीके स्वीकारवामां आव्युं होय; ते सर्वने संभारवापूर्वक तेमनुं स्तवन तथा भाववन्दन करवानुं प्रयोजन, मुख्यपणे होय छे. तीर्थस्वरूप पदार्थो तथा क्षेत्रोनुं स्मरण करवुं, ए जैन संघमां एक उत्तम पुण्यकर्म अने भावयात्रारूप कर्तव्य मनायुं छे. केटलीक वार, कोई साधुमुनिराज, कोईएक मोटा शहेरमां अथवा तो पोते पादविहार द्वारा विचर्या होय ते विभाग / परगणामां आवेल जिनालयोनुं वर्णन करती काव्यरचना पण करे छे, जे 'चैत्यपरिपाटी' अथवा 'तीर्थमाला'ना नामे ओळखाय छे. मध्यकालमां अनेक कविओए आवी रचनाओ करी छे, जे पैकी घणी प्रकाशित पण छे. परन्तु ते रचनाओ महदंशे गुजराती भाषामां होय छे. प्रस्तुत रचना 'प्राकृत' मां छे, ए तेनी विशेषता छे. प्रथम पांच गाथामां अरिहंत - वन्दनारूप मंगलाचरण कर्या बाद कवि, पोताने अरिहंत सांपड्या होवा बदल पोतानी धन्यता प्रगट करे छे. १०-११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520536
Book TitleAnusandhan 2006 06 SrNo 36
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages70
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy