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June-2006
१. आपणे त्यां अटले के जैन संघमां, कोई पण प्रतिमा जरा प्राचीन होय अने तेना पर लेख-लांछनादि निशान न होय, तो ते प्रतिमाने 'सम्प्रति राजानी भरावेली प्रतिमा' तरीके ओळखवामां क्षणनो पण विलम्ब थतो नथी. 'प्रतिमा जेम प्राचीन तेम तेनी उपासनामां भावोल्लास वधु थाय' अवी श्रद्धा ज आमां काम करती होय छे ते तो सहेजे समजी शकाय तेवू छे.
हवे आ बाबते संशोधक-दृष्टिनो उपयोग करवामां आवे तो आ रीते विश्लेषण थई शके : (१) प्रतिमा पर कच्छ-कंदोरानां चिह्नो होय ज, अटले ओ वधुमां वधु पंदरसो वर्ष जेटली पुराणी गणाय; ते पहेलांनी नहि ज. (२) प्रतिमा आरसपहाणनी होय तो ते दसमा सैकाथी वधु प्राचीन न होय; आरसनो उपयोग १०मा सैका पछी ज चालु थयो छे. (३) प्रतिमानो आकार-प्रकार जोतां ज ते १२ मा के १५मा सैकानी हशे तेम अनुभवी अभ्यासी तत्काळ नक्की करी शके. (५) प्रतिमानी पलाठीमां अखण्ड के त्रुटक लेख होय तो तेना आधारे पण समयनो निर्धार थई जाय. ___ताजेतरमा ज अक जग्याओ बोर्ड वांच्यु : "२२०० वरस जूनी आ प्रतिमा छे." हवे प्रतिमाना घाटघूट वगेरे जोतां ते स्पष्टतः वधुमां वधु ४०० वर्ष पुराणी जणाती हती. अक ठेकाणे बारमा सैकानी प्रतिमा पण '२३०० वर्ष प्राचीन' तरीके वखणाय छे.
संशोधनथी बीजो कोई लाभ नथी थतो, पण मिथ्या धारणाओने के असत्य मान्यताओने ते रोकी शके छे, अने सत्य के यथार्थ मान्यता तरफ श्रद्धाळुने दोरी जाय छे.
पण जो तेनो स्वीकार करी ले, तो तो पोते जे स्थानादिनो महिमा वधारवा झंखता होय ते न वधारी शकाय. अटले संशोधनने मिथ्या ठेरववामां ज तेवाओने लाभ रहे छे. सवाल अटलो ज के सत्य हाथवY होवा छतां मिथ्या धारणाने ज यथार्थ ठेरववानी आ प्रवृत्तिने 'सम्यक्त्व' गणी शकाय खरी ?
२. शत्रुञ्जयतीर्थनो अनर्गळ महिमा जैन संघमां प्रवर्ते छे तेनो सघळोये आधार 'शत्रुञ्जय माहात्म्य' नामना ग्रन्थ उपर छे, ओ तो सर्वविदित छे. आ
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