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________________ June-2006 45 होय त्यारे, विद्वानोओ, भारतवर्षना राजकीय इतिहासने, अन्य अटले के वैदिक अने बौद्ध जेवा मतोना इतिहासने, भाषाप्रयोगोने, साहित्यिक तथा शिलालेखी प्रमाणोने, पुरातात्त्विक उत्खननो अने शोधखोळो द्वारा सांपडतां तथ्योने - आ बधांने पण नजर समक्ष राखीने, तेना परिप्रेक्ष्यमां ज निर्णय करवानो होय छे. पारम्परिक धार्मिक मान्यताओने 'साची ज' मानीने ज जो तेमने संशोधन करवानुं होय तो तो पछी तेमनां संशोधननो अर्थ ज क्यां रहे छे ? हवे ज्यारे आ बधी बाबतोने लक्ष्यमां लईने कोई ओक जैन घटनानो निर्णय करवानो होय, तो ते वखते पछी धार्मिक परम्परा के मान्यता शुं छे तेनो विचार संशोधक माटे अप्रस्तुत ज बनी रहे. अलबत्त, पोताना संशोधननो अर्थ अने उपयोग, धार्मिक मान्यतानी परम्परा पर प्रहार करवा माटे करवानु, साचा संशोधकना मनमां पण न होय. तेनुं काम तो पोताने सूझेलं संशोधन विद्वानो तथा विचारको समक्ष रजू करी देवानुं ज होय छे. पछी तेनो स्वीकार करवो के न करवो ते तो परम्परानी इच्छा उपर ज निर्भर होय छे. आम छतां, संशोधकना आशय उपर मलिनतानो आक्षेप करवो अने तेमना संशोधनने तथा तेना प्रसार-प्रचारने रोकवानी योजना करवी, ते तो बौद्धिक क्षमतानी दृष्टिले पछात होय तेवा समाजमां ज शोभे; जैनोने नहि. ___ जैन मुनिओ तो विचारशील होय; उदार होय; पोतानी परम्परागत वातोनुं बहुमान तेमना हृदयमां अखूट ज होय, पण साथे साथे, नवां अने प्रमाणभूत अवां संशोधनो तेमज विचारो परत्वे अमनो दृष्टिकोण जिज्ञासासभर होय अने तिरस्कारभर्यो तो नहीं ज. ___अक रूढ मान्यता, धारो के सेंकडो वर्षोथी चाली आवती होय; बधा ज तेनो स्वीकार श्रद्धाभेर करता होय; अने से मान्यता परत्वे कोई संशोधक विद्वान, अधिकृत प्रमाणो दर्शाववापूर्वक, ते मान्यताथी तद्दन विपरीत वात शोधी बतावे, तो तेमां तेणे अपराध शो को ? हा, परम्परा ते प्रमाणभूत वातने स्वीकारे तो तेने 'मिथ्या'ना त्यागनो अने 'सत्य'ना पुरस्कारनो सम्यक्त्व-लाभ जरूर थाय; पण तेम करवू जो शक्य न होय तो, तेम करवा माटे पेला संशोधक आपणने कांइ फरज तो पाडवाना नथी ज ! तो पछी संशोधक अने तेना संशोधनथी आपणे आटला बधा डरीओ छीओ शा माटे ? अकळाइ जवान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520536
Book TitleAnusandhan 2006 06 SrNo 36
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages70
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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