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June-2006
१६४९ स्पष्ट लिखा है । अत: स्पष्ट है कि ग्रन्थ की रचना १६४९ श्रावण शुक्ला त्रयोदशी के पूर्व हुई है और प्रशस्ति की रचना ७ मास के पश्चात् ।
इस पुस्तक का प्रथम संस्करण सन् १९३३ में प्रकाशित हुआ था जो आज अप्राप्त है । श्रुतज्ञ विद्वानों के अध्ययन, पठन-पाठन एवं वैदुष्य प्राप्ति के लिए इस ग्रन्थ की महती उपयोगिता है, अत: साहित्यिक संस्थानों से मेरा अनुरोध है कि इसका सम्पादित द्वितीय संस्करण शीघ्र ही प्रकाशित करें ।
टिप्पणी
१. कवि के विशेष परिचय के लिए देखें महोपाध्याय विनयसागरः महोपाध्याय
समयसुन्दर
२. अनेकार्थरत्नमञ्जूषा पृष्ठ ६५
३. वही, पृष्ठ ६७ ४. वही, पृष्ठ ७०
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