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________________ 38 अनुसन्धान ३६ जिनचन्द्रसूरि को जिनसिंहसूरि आदि प्रमुख शिष्यवृन्द के साथ बड़े सम्मान के साथ बुलाकर यह अष्टलक्षी ग्रन्थ मेरे ( समयसुन्दर) से दत्तचित्त होकर सुना। यह ग्रन्थ सुनकर पातिशाह अकबर हर्ष से विभोर एवं गद्गद् होकर इसकी अत्यन्त प्रशंसा करते हुए कहा कि इस ग्रन्थ का पठन-पाठन सर्वत्र विस्तृत हो । ऐसा कहकर यह ग्रन्थ स्वयं के हाथ में लेकर मुझे प्रदान कर इस ग्रन्थ को प्रमाणीकृत किया । इस ग्रन्थ का रचना स्वरूप इस प्रकार है : १,००४ ८७५ प्रणाली मंगलाचरण में सूर्य एवं ब्राह्मी देवता को नमस्कार किया हैराजा नो, राजा आनो, रा अज अ अ नः, रा अजा नो, राज आ नो राजाय् नो, ॠ आजा नो इस प्रकार नो राजाना उ. राजाव् राजानो शब्द के अर्थ किये हैं । ३,४२० ७० पश्चात् 'ते' शब्द को तृतीया, चतुर्थी, प्रथमा, पञ्चमी, षष्ठी विभक्त्यर्थ ग्रहण किया है । अर्थात् ४२९५ अर्थों के 'ते' की प्रत्येक विभक्ति से पांच वार गुणित करने पर २१४७५ अर्थ हो जाते हैं । २१,४७५ ५७ ४,०६० - - राजा के 'अ' को सम्बोधन बनाकर नो दद अनोदद आनोदद पद के ८७५ अर्थ किये हैं । 'दद' शब्द को सम्बोधन बनाकर 'ददादद' पद के ३४२० अर्थ किये है | इस प्रकार ८७५ और ३४२० अर्थ कुल ४२९५ अर्थ नोद के होते हैं । साथ ही यह भी संकेत किया है कि राजन् शब्द के यक्षवाचक और सूर्यवाचक अर्थ भी किये जाय । पुनः प्रकारान्तर से 'दद' शब्द को दानदायक अर्थ में नञ् समास पूर्वक ७० अर्थ किये हैं । पुन: केवल 'द' शब्द के ५७ अर्थ किये हैं । इसके पश्चात् लेखक का कथन है कि दानदायक 'दद' पद के केवल नञ् समास पूर्वक जो ७० अर्थ हैं, उस प्रत्येक एक अर्थ को 'द' शब्द के ५७ अर्थों में प्रयुक्त करे । अर्थात् ७० को ५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520536
Book TitleAnusandhan 2006 06 SrNo 36
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages70
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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