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अनुसन्धान ३६
आविर्भूत इवार्कमण्डलकरे स्थातुं कुतोलं तमः, गर्जत्तोयदशामलाभ्रपटलान्ते दीप्रदाघावलिः । जिह्वायुग्मवरस्युरत्फणगणव्यालास्यवाकृष्णवेः, शुद्धं श्रीगुरुभिर्मुदा कृतकृपैर्देयं पवित्रं दलम् ॥१२॥ मासे चास्वनि नाम्नि चोज्वलतरे पक्षे वरे वासरे, द्वादश्यां प्रवरे च सुन्दरतरे वारे द्विजाधीशकम् । अत्रत्यः सकलोपि श्राद्धनिचयः सद्भावभिन्नाशयः, वन्दत्यन्वहमाशु तत्र भवतां शिष्याश्च वन्द्या मुहुः ॥१३|| धीमान् धीधरवान् धराधिधरवान् धीरत्ववान् ध्यानवान्, ज्योतिर्वान् यतिवान् यतित्वगुणवान् जेतृत्ववान् निस्तनोः । नन्द्याच्चन्द्रगणाधिपश्चिरमसौ श्रीजैनचन्द्राभिधः,
आशीनित्यमलं ददाति प्रमुदश्चारित्रचन्द्राभिधः ॥१४|| । तथा श्रीजीनइ पत्र ३ आगइ मुंक्या छइ तीणथी सर्वसमाचार अवधारेज्यो । अपरं शिष्य दो कुटेवा पड्या छइ, अतः परं श्रीजीनी कृपाथी सुनजरथी स्वामी धर्म गुण थी समाधि थई । श्रीसंघइ घणी परिचर्या कीधी धन्य श्रावक श्राविका छइ । ___अपरं अत्र नइ संघइ श्री पूज्यजीनइ वीनती लिखीछइ ते जउ श्रीपूज्यजी नइ दाई आवइ । अत्र नउ आदेश द्यउ, तउ बि क्षेत्र देज्यो मेडता नागौर ना। पणि कहवा पड्या क्षेत्र स्वरूप पूजजी मालूम छइ । पूज्यजीरइ प्रसादै पारावणउ घणउ ही आवइ छइ । परं हवि ष चीतरउ ग्रन्थि सत्क। ईए वास्तइ श्रीजीनइ वीनती लिखीछइ, अवनउ ऽऽदेश घउ, तउ श्रीनागोर नउ पिणि कृपा करेज्यो, ए अरज छइ । पछइ जिम प्रभुजीनइ विचार आवइ ते प्रमाणा । अपरं समाचार एक अवधारिज्यो । रजत ४ चो. खेतानइ दिया हुता ते ऽजी पिण ते चढ़ाव्या नथी । थे जाणउ छउ । जिस्यउऽऽहार वमवउ दोहिलउ अजोग्य दल वाडउ बोलिवा जोग्य नहीं । अपरं वली कहइ छइ खेतउ श्री पूज्यजीनइ लिखउ रजत ४ मुकिद्यई तीनिरइ वास्तइ श्रीजीनइ म्हे कह्या छइ । तीए वास्तइ कदाचि श्रीजी मुंकउं तउ श्रीसंघनई मुंकेज्यो । अपरं वा श्रीपूजजी उरइ तीण नइ भलाव्या तउ
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