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अनुसन्धान ३५
सहायता मळे छे. तेथी ज आवा ग्रन्थोनुं प्रकाशन इच्छनीय अने आवश्यक बनी रहे छे.
प्रख्यात अने लुप्त कृति 'तरङ्गवती' तथा तेना रचयिता पादलिप्तसूरि जैन परम्पराना न हता एवी स्थापना गुजरातना एक गण्यमान्य इतिहासविद द्वारा थई छे, तेनो सांगोपांग अने स्वस्थ प्रतिवाद आ. शीलचन्द्रसूरि द्वारा अनु०ना प्रस्तुत अंकमां प्रसिद्ध करायो छे. क्यारेक अधूरी माहितीना कारणे, क्यारेक विषयनी अपरिचितताथी तो क्यारेक साम्प्रदायिक ममत्वथी विद्वान संशोधको पण खेंचाई जता होय छे. श्री नरोत्तम पलाण जेवा साक्षर पण ज्यारे लखी नाखे के 'तरङ्गवती जैनेतर कविनी रचना छे अने जैन आचार्ये तेने जैन रूप आप्युं छे' त्यारे आश्चर्याघात जागे. अहीं सवाल ए थाय के कोई एक आचार्ये कथाने जैन रूप आपी दीधुं तेथी अजैन रचना कोई वटहुकमथी सर्वत्र प्रतिबन्धित तो न ज थई होय. ए कथा तेना असली रूपमां बीजे ठेकाणे तो बची ज गई होय. जो ए कथा अजैन स्वरूपमां क्यांय मळती ज न होय, अरे तेवो उल्लेख सुद्धां न मळतो होय त्यारे काल्पनिक आधारो शोधी इदं तृतीयं जेवं विधान करवू ए कां तो नवरा माणसोनुं काम होय, कां तो रंगद्वेष जेवी मानसिकतानुं परिणाम होय.
___अनु०मां त्रणेक हप्तामा विशेषावश्यक भाष्यनी शुद्धिवृद्धिनी सूचि छपाय छे. वि.भाष्य जेवा आकरग्रन्थना बे पुनर्मुद्रण ताजेतरमा थयां छे, ए आनन्दनो विषय छे, परंतु संशोधननी शास्त्रीय पद्धतिनो अने आजना युगमां उपलब्ध साधनोनो लाभ लेवानी चिन्ता आपणा श्रमणसंघमां जोइए तेवी स्थिर नथी थई ए खेदनो विषय छे. वि. भाष्यनी मुद्रित नकल पोतानी पासे होय तेमां आ शुद्धि-वृद्धि पोताना हाथे करी लेवा जेटली काळजी पण आपणे बतावी शकीशुं खरा ?
___C/o. जैन देरासर नानी खाखर (कच्छ)
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