SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फेब्रुआरी - 2006 71 प्रान्तपुष्पिका में कहा है - आचार्य हेमचन्द्रसूरि रचित सप्तसन्धान काव्य अनुपलब्ध होने से सज्जनों की तुष्टि के लिये मैंने यह प्रयत्न किया है । इस काव्य में ८ सर्ग हैं । काव्यस्थ समग्र पद्यों की संख्या ४४२ हैं । प्रस्तुत काव्य में ऋषभदेव, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर, रामचन्द्र, एवं यदुवंशी श्री कृष्ण नामक सात महापुरुषों के जीवनचरित का प्रत्येक पद्य में अनुसन्धान होने से सप्त-सन्धान नाम सार्थक है । महाकाव्य के लक्षणानुसार सज्जन-दुर्जन, देश, नगर, षड्ऋतु आदि का सुललित वर्णन भी कवि ने किया है। काव्य में सात महापुरुषों की जीवन की घटनायें अनुस्यूत हैं, जिसमें से ५ तीर्थंकर हैं और एक बलदेव तथा एक वासुदेव हैं । सामान्यतया ७ के माता-पिता का नाम, नगरी नाम, गर्भाधान, स्वप्न दर्शन, दोहद, जन्म, जन्मोत्सव, लाञ्छन, बालक्रीडा, स्वयंवर, पत्नीनाम, युद्ध, राज्याभिषेक आदि सामान्य घटनायें, तथा ५ तीर्थंकरों की लोकान्तिक देवों की अभ्यर्थना, वार्षिक दान, दीक्षा, तपस्या, पारणक, केवलज्ञान प्राप्ति, देवों द्वारा समवसरण की रचना, उपदेश, निर्वाण, गणधर, पांचों कल्याणकों की तिथियों का उल्लेख, तथा रामचन्द्र एवं कृष्ण का युद्ध विजय, राज्य का सार्वभौमत्व एवं मोक्ष-स्वर्ग का उल्लेख आदि कथाओं की कडियें तो हैं ही. साथ ही प्रसंग में कई विशिष्ट घटनाओं का उल्लेख भी है। आदिनाथ चरित में - भरत को राज्य प्रदान, नमि-विनमि कृत सेवा, छद्मस्थावस्था में बाहुबली की तक्षशिला नगरी जाना, समवसरण में भरत का आना, भरत चक्रवर्ती का षट्खण्ड साधन, मगधदेश, सिन्धु नदी,शिल्पतीर्थ, तमिस्रा गुहा, हिमालय, गंगा, तटस्थ देश, विद्याधर विजय, भगिनी सुन्दरी की दीक्षा आदि का उल्लेख हैं । शान्तिनाथ के प्रसंग में -- अशिवहरण, तथा षट्खण्ड विजय द्वारा चक्रवर्तित्व । नेमिनाथ - राजीमती का त्याग महावीर - गर्भहरण की घटना राम - भरत का अभिषेक, वनवास, शम्बूक का नाश, बालिवध, हनुमान की भक्ति, सीताहरण, जटायु विनाश, सीता की खोज, विभीषण का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520535
Book TitleAnusandhan 2006 02 SrNo 35
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy