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________________ 60 अनुसन्धान ३५ येम वयण श्रवणें सूणी रे, प्रभुजीसुं पभणे अभयकुमार रे; कर्म सुभट किम जीपीये रे, वीरजी कहै उपचार रे..... क० ॥८॥ समकित केशरीया वागो पहरनें रे, पंच महाव्रत बगतर टोप रे; धरम ढाल करमें लीजीये रे, खिमा खडग ले देई उपरे..... क० ॥९॥ सतर सावतवा रें सूरवां रे दश मुकटबध ल्येवो राय रे सहस अढारें सुभट सजी करी रे, बठो तुम शीलरथमाहि रे..... क० ॥१०॥ दया हस्ती तुम शिणगारने रे, सुमत पचरंगथर राय रे; ग्यान नगारो देई करी रे, भावन भेरी चढो वजडाय रे.....क० ॥११॥ एम वयण सुंणी हरखनें रे, उठीयो थई तैयार रे; करम सुभट जीपण भणी रे, लीधा सस्तर अभयकुमार रे..... क० ॥१२॥ जोर जुगत करी जीपीया रे, देवां मिल बोल्या जयजयकार रे; मानदत्त शिवनारी वरी रे, प्रणमुं हुं नितें वारंवार रे..... क० ॥१३॥ इति अभयकुमार स्वाध्याय संपूर्णं ॥ (२) ॥ चरण कमल रे प्रणमी गुरु तणा, कहस्युं सील वखाण; भव भय टाली रे मनवंछित लह्या, सील तणे परमाण..... १ सील समाणो रे भवि व्रत को नहीं... आं० । सील प्रभावे रे परतिख देखीयो, अगन थई जलराशि, सीता सती रे जग जस वांधीयो, गुण गावें मुनि ताशि.... २ शी० चलणी काढ्यो रे पाणी निरमलो, बांधी काचो रे तार; देई छांटा रे सतीय सुभदरा, खोल्या चंपा द्वार.... ३ शी० पांच पांडव विनरे(वे) वलिवलि नर जिके जाण्या द्रोपदी वीर; जास प्रभावे रे भविजन प्राणीयो, वाध्यो अति घणो चीर..... ४. शी० श्रेणक नृपनी रे मनभावती, सती चेलणा जाण; समोसरणमें रे वीर जिणंदजी, कीधो जास वखाण..... ५. अभया राणी रे दुःख दीधो घणो, चित न चलायो रे तेह; सूली फीट रे थयो सिहासणो, सेठ सुदरसण जेह..... अहि अरि नाग रे आदि देई करी, भय जावें सब नाठ; रण वनमें रे इण परभावथी, होवें जिहां तिहां रे थाठ..... ७. शी० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520535
Book TitleAnusandhan 2006 02 SrNo 35
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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