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अनुसन्धान ३५
पत्र पुष्प पल्लव करीय अतिशोभे जेह, श्रीजिनवर बइसी रहे तिहां दीसे तेह..... ||३|| आठमे वर समभूमिभाग रमणिक सुहावइ, नवमे कंटक तणा अणी उपराठा थावइ; रितु विपरीति सवे हुवे ओ सुखकारी दसमे, शितल वायु सुगंध फरस तिहां एकारशमे..... ॥४॥ गंधोदकघन बारसमे रजरेणु समावे, तेरसमे वरकुसुमवरण पांचे म[न] भावे; बिंट अठाइ सुरभिगंध सवि जाणु प्रमाण, तेह तणो उपचार करे तिहां किण(कने) सुरठाण..... ॥५।। सद्द फरस-रस-रूप-गंध अनिष्ट अकांत, चौदमे अतिशय उपसमे वरते अविभांत, सद्द फरस-रस-रूप-गंध अतिकंत उदार; प्रगट थाय जिणवर कहे ओ पनरमे सार..... ॥६॥ जन्म थकी धुरि चार होवे पन्नर कर्म टाली, देवतणा कृत पन्नर शुद्ध तप-संजम-पाली; ओ अतिशय चोत्रीश सवे जिननायक केरा; भणता-गुणता सयल रिधि सुख लहे भलेरा..... ||७||
कळश
श्रीजीवरिषिगणि हस्तदीक्षित सकल बुद्धिनिधान मे, श्रीमल्लगणिवर गुणे अधिका सुमति गुपति परधान ...... ॥१॥ तस चरणसेवक कान्हमुनि सुदि श्रावण पुनिम सार ओ, संवत सोलहबावने शोभतो दिन गुरुवार अ..... ॥२॥ जिनराजना अतिशय थुण्या गढ जेसलमेर मजार ओ भणो भवियण हरखशुं सवि संघ जयजयकार अ..... ॥३॥ ॥ चोत्रीश अतिशय स्तवनम् ॥ .
C/0. किरीट ग्राफिक्स रतन पोळ, अमदावाद-३८०००१
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