SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 50 अनुसन्धान ३५ टीकाना आधारे करवामां आवी छे. ___(४) प्रसिद्ध ऋषिभाषित, प्रवचन सारोद्धार, वीतरागस्तोत्र, अभिधान चिन्तामणि नाममाला, योगशास्त्र वगेरे श्वेताम्बरमूर्तिपूजक परम्पराना ग्रन्थोमां अतिशयोनी वहेंचणी आ मुजब छे : (जन्मथी ४, कर्मक्षयथी ११, देवकृत १९) (५) एटलुं ज नहि, उपरोक्त ग्रन्थोमां समवायांग सूत्रमा बतावेला अतिशयो करता केटलाक अतिशयोमां फरक पण जोवा मळे छे. श्री कान्हमुनिविरचित चोत्रीश अतिशयस्तवन पाय वंदिओ रे श्री महावीर जगतगुरु, जेणे भाख्यो रे आगम अनोपम सुखकरु; तिहां चोथे रे समवाय अंगे जाणीओ, बुधि अतिशय रे विवरी तिहां वखाणीओ. वखाणीओ चोत्रीश अतिशय, जन्मथी धुर चार ; रोगरहित शरीर निर्मल, तेहमांहे एक सार अ. गोखीर सम सित मांस-शोणित, बीजो अतिशय ए कह्यो; वर कमल गंध समान, सास-उसास त्रीजे ए लह्यो..... ॥१॥ मंसचक्षु रे आहारनिहार न देखीई, एह अतिशय रे चोथे आगम पेखीई; घनघाति रे कर्मक्षय ते उपजे, ते पनर रे अतिशय जिनवरने भजे. जे भजे जिनसिरपीठ भागे, भामंडल अति दीपतो; ए पनरमांहि एक अतिशय, प्रभा दिनकर जीपतो. एक जोयण अमृतवाणी पसरई, बीजो ए अतिशय धरइ; अर्धमागधी वाणी त्रीजे, सकल संशय अपहरइ..... ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520535
Book TitleAnusandhan 2006 02 SrNo 35
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy