SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 48 अनुसन्धान ३५ बारमा अंगनी तीजी परूवना चूलिका पंचम गावो । तिन कारण चित अधिक उल्हासें दृष्टिवाद पिण ध्यावो रे ।भ० ॥१॥ भवसिद्धी सुभ दरशन आश्रय दस चउद पूरव गावो । भाव षयोपशम श्रुति अभ्यासें संपद सहज निपावो रे ।भ०॥२॥ अनुकरमें जिन भगति नानें गणधर निज पद पावै । नवनिधिसंयम कुशलें धारी अविचल कमला रमावै रै ।भ०॥३।। काव्यं ॥ प्रवरपूर्वगतश्रुतिसंपदं विमलभावहृदाम्बुज धारयन् ॥ निजकलत्रमुपेत्य सुखेन ते शिवगतं प्रणमामि शिवाय तं ॥१॥ ॐ ह्रीं श्री दृष्टिवादश्रुतिभ्योर्थं यजामहे स्वाहाः ॥इत्यर्थम् ॥ इति महोपाध्याय चरित्रनंद कृता ॥ इति पूर्वगत पूजा समाप्ता ॥ अथ आरती ॥ जय जय जिनराया ।। ए चाल ॥ जय जय अविकारा आरति करुं सुखकारा । पूरव श्रुतिसारा ॥ज० ॥१॥ उतपाद १, अग्रनीय, २, वीरयवादें ३ अस्ति नास्ति ॥४॥ स्यादवादा ।। ए चउ पूरव अतिशय चूलिका ॥ संयुत परिवादा जि०॥२॥ नान ५, सत्य ६, आतम ७, करमवादें ८, पचखान ९, गुनधारा ।। विद्या १०, अवंझ ११, प्राणावाय १२, बारमो। किरिया १३, बिंदुसारा १४, ज० ॥३॥ ए चउद पूरव नित प्रति ध्यावत, परमानंद भाया । तनमय तत्त्व रमणता आदर, परसुख विरमाया ॥ज० ॥४॥ जे भवि पूरवगत श्रुति आरति करस्यै चित लाया । । ते निधि चारित्र कमला वरस्यै वंछित फल पाया ॥ज० ॥५॥ इति पूरवगत आरती ॥ श्री श्री श्री साहा फूलचंद मूलचंद पठनार्थं ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520535
Book TitleAnusandhan 2006 02 SrNo 35
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy