SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 21 . फेब्रुआरी - 2006 सोरठि - धर्म न पढियां होय धर्म न काया तप तपे धर्म न दीइं दांन धर्म न पूजा जप जपे ॥२७॥ दोहा ॥ दांन करो पूजा करो तप जप करो दिन राति इक जांण न वस्तु बिसरी यन करणी मदमाति ॥२८॥ धर्म वत्थुसहाव हो जो पहिचांणो कोय ताहि अवर क्यों पूजीइं हो सहज उपजें सोय ॥२९॥ धर्म जु निर्मल हो जाणहु वत्थु-सहाव आप हि धम्मिया हो धर्म हि आप सहाव आपणो सभाव हि धर्म जांणो जांणि धर्मी आपहु संकलप विकलप दूर टरकै यह निज कर थापहु विवेक व्रत निज निज हीयें धरकें तिहि सहित सोभित सब कला अनादि वस्तु-सहाव ॲसो जांनि धर्म जु निर्मला ॥३०॥ दोहा ॥ दुलभ परको भाव ताकी प्रापति व्हैं नहि जो अपणो हि सभाव सो क्यों दुर्लभ जांणीइं ॥३१॥ हंस न दुलभा हो मुकति सरोवरतीर इंदिरहित जिया हो पीवहु निरमल नीर निरमल नीर पाइ तिरस भांजे बिरह व्याकुल सो नहि सुगम पंथ हि पथिक चालें सप्त भइमहि को नहि आतम सरोवर ज्ञान सुख जल मुकति पदवि सुलभो सुक्षेत पंथसु ससय गवनों जन हि जांनि सुदुलहो ॥३२॥ दोहा ॥ सो सुंणि बारह भावना अंतरगति उल्लास सो सम्मदिट्ठि जीवडा समें समें पर भास ॥३३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520535
Book TitleAnusandhan 2006 02 SrNo 35
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy