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अनुसन्धान ३५ नियमानुसार प्रारम्भ में दो नगण होते हैं अर्थात् ६ लघु होते हैं तत्पश्चात् सामान्यतया ७ रगण होते हैं अर्थात् गुरु लघु गुरु की पुनरावृत्ति होती रहती है । २७ वर्णात्मक के पश्चात् एक-एक गण की वृद्धि होने पर दण्डक के पृथक्-पृथक् नाम भी प्राप्त होते है । दो नगणों के पश्चात् शेष ७ गणों का यथेच्छ निवेश भी किया जाता है । यहाँ दो नगण के पश्चात् ३३१ रगण का ही प्रत्येक चरण में प्रयोग किया गया है ।
वर्ण्य विषय इस विज्ञप्ति - पत्री में महादण्डक छन्द के केवल चार चरण हैं और प्रत्येक चरण ९९९ वर्णों का हैं । प्रत्येक चरण का वर्ण्य विषय पृथक्-पृथक् है । चरणानुसार वर्ण्य विषय का संक्षिप्त उल्लेख किया
जा रहा है :
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१. प्रथम चरण में माँ शारदा / सरस्वती देवी के गुणों का वर्णन करते हुए स्तवना की गई है। शारदा देवी को ऐं बीजाक्षरधारिणी बतलाते हुए कहा गया है कि वह मिथ्यात्व का संहार करने वाली है, सम्यक्त्व से संस्कारित है, दुर्बुद्धि का निवारण करने वाली है, सद्बुद्धि का संचार करने वाली है, तीर्थस्वरूपा है, त्रिमूर्ति द्वारा सेवित है, समस्त देवों के द्वारा पूजित है, सप्त ग्रहों और शाकिनी इत्यादि देवियों के द्वारा प्रदत्त विघ्नों का संहार करने वाली है, भक्तों का निस्तार करने वाली है, धर्मबुद्धि धारण करने वाली है, सेवकों के वांछित पूर्ण करने वाली है, मायाविदारिणी और दैत्यसंहारिका है ।
२. दूसरे चरण में चौवीस तीर्थंकरों के नाम, ११ गणधरों के नाम, ६ श्रुतधरों के नाम, युगप्रधान आचार्यों के नाम स्थूलभद्र, महागिरि, सुहस्ती, शान्तिसूरि, हरिभद्रसूरि, श्यामार्य, शाण्डिल्यसूरि, रेवतीमित्र, आर्यधर्म, आर्यगुप्त, समुद्रसूरि, आर्य मंख, आर्य भद्रगुप्त, आर्य भद्र, आर्य रक्षित, पुष्पमित्र, आर्य नन्दी, आर्य नागहस्ति, आर्य रेवती, आर्य ब्रह्म, नागार्जुन, गोविन्दसूरि, सम्भूतिसूरि, लौहित्यसूरि, श्रीवल्लभी में जैनागमों को ताड़पत्र पर सुरक्षित रखवाने वाले देवर्धिगणि क्षमाश्रमण, उमास्वाति, और भाष्यकार जिनभद्रसूरि आदि के पश्चात् अपनी सुविहित परम्परा के आचार्यगणों देवसूरि, नेमिचन्द्रसूरि, उद्योतनसूरि, वर्धमानसूरि, जिनेश्वरसूरि, जिनचन्द्रसूरि, अभयदेवसूरि, जिनवल्लभसूरि, जिनदत्तसूरि, जिनचन्द्रसूरि, जिनपतिसूरि,
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