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________________ महोपाध्याय श्रीमेघविजयगणिरचितः सेवालेखः । सं. विजयशीलचन्द्रसूरि महोपाध्याय श्रीमेघविजयजी ए १८मा शतकमां थयेल जैन साधुविद्वानोना वृन्दमां एक यशोज्ज्वल अने अग्रगण्य विद्वान् साधुपुरुष छे. तेमनी रचनाओ तेमने संस्कृतना महान् कविराजोनी हरोळमां मूकी आपे तेवी प्रगल्भ अने प्रासादिक होय छे. तेमनो सत्तासमय १७मा शतकनो पश्चार्द्ध अने १८मा शतकनो पूर्वार्द्ध छे. तेमणे अनेक विषयो पर अनेक रचनाओ संस्कृत आदि भाषाओमां करी छे, तेमना समयमां संस्कत-काव्यात्मक पत्रलेखननी प्रवृत्ति खूब विकसेली हती. अनेक विद्वान् मुनिराजो पोतपोताना गुरुजनो पर लांबा अने विद्वत्तानी चमत्कृतिओथी भरपूर एवा पत्रो लखता-मोकलता. आ पत्रोने 'विज्ञप्तिपत्र' ना नामे ओळखवामां आवे छे. पोतानामां रहेल सर्जनात्मक उन्मेषने उजागर करवानुं आ पत्रलेखन एक सबळ माध्यम आ समयमां बनी रहेलुं, महोपाध्याय मेघविजयजीए पण आवा अनेक पत्रो लख्या हता, जेमांना बे विज्ञप्तिपत्रो - १. मेघदूत समस्यापूर्ति-विज्ञप्तिलेख अने २. विज्ञप्तिका एवा नामे श्रीजिनविजयसम्पादित 'विज्ञप्तिलेखसंग्रह' (ई. १९६०, सिंघी सिरीझ)मां प्रकाशित छे. प्रथम पत्र औरङ्गाबादथी गच्छपति विजयप्रभसूरि उपरनो छे, तो द्वितीय पत्र द्वीपपत्तने (दीवबन्दरे) विराजता गच्छपति श्रीविजयदेवसूरि उपर लखायेल छे. लेखन/रचना-वर्ष कोई पत्रमा नोंधायेल नथी. बन्ने पत्रोमां अनुक्रमे १३० तथा १२५ पद्यो छे, जे काव्यतत्त्वनी दृष्टिए अद्भुत गणाय तेवां छे. तेमां पण प्रथम पत्र तो कविकुलगुरु कालिदासना मेघदूतकाव्यनी पादपूर्तिरूप छे, जे अनेक रीते महत्त्वपूर्ण छे. ए पत्रना छेडे तेमणे एक ,श्लोकमां' आपेली नोंध प्रमाणे तेमणे माघकाव्यनी पादपूर्तिरूप विज्ञप्तिपत्र विजयदेवसूरि उपर लखेलो हतो. आ पत्र अद्यावधि उपलब्ध या प्रकाशित होवानुं जाणमां नथी. विज्ञप्तिलेखसंग्रहना प्रास्ताविकमां श्रीजिनविजयमुनिए नोंध्युं छे ते प्रमाणे, १. माघकाव्यं देवगुरोर्मेघदूतं प्रभप्रभोः । समस्यार्थं समस्यार्थं निर्ममे मेघपण्डितः ॥ (विज्ञप्ति लेखसंग्रह, पृ. १०६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520533
Book TitleAnusandhan 2005 09 SrNo 33
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages102
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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