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अनुसन्धान ३३
माह वदि तेरसि उज्जल-निय-जसि पुव्वलक्ख चुलसीय-जू(जु)य । जय पढमजिणेसर ! सू(सु)अभरहेसर !, करि पसाउ निम्मलचरी(रि)य ॥५॥
॥ इति श्रीआदिनाथस्तोत्रम् ॥
श्रीशान्तिनाथस्तोत्रम् ॥ वीससेण-अइरादेविनंदण ! तणुहरण ! जय अपुव्वहरिणक-अखंडियतणुकिरण ! । सिरिसिरिसेण-कुरुनर-सोहम्म-खयरनिवपाणय-सो अपराजी(जि)य-अच्चुयइंदभव ! ॥१॥ विज्जाहिव-गेविज्ज-नरवइमेहरहसव्वट्ठ अवयन्नउ गयउर संतियह । भाद्रवए वदि-सातमि सामी चवण तुह जिट्ठ-कसिण-तेरसि-निसि जायउ जम्भमहो ॥२॥ जिट्ठ-चउद्दसि-बहुलीय संजमसिरि वरीय पोस-सुदि-नउमि-दिणि केवलवरि वरीय । जिट्ठ-कसिण-तेरसिनिसि कंचणकंतितणु मुक्खसुक्ख पहु पामीय छंडिय कम्मवण ॥३॥ चउसट्ठि सहस-अंतउर चुलसीयलक्खयहय-गय-रहवर छन्नवइकोडि-पायक तह य । नवनिहि चऊदरयण छक्खंड-सभूमिवर धम्मचक्कि सोलसमु पंचम चक्कहर ॥४॥ चालीसधणुहदेहो, लक्खं वरिसाण जीवियं जस्स । सो संतिनाहदेवो, करेइ संघस्स सिवसंती ॥५॥
॥ इति श्रीशान्तिनाथस्तोत्रम् ॥
श्रीनेमिनाथ स्तोत्रम् ॥ पंचजन्नि-आउरिय-संख जिणि दिणह अज्ज वि जसु पय सेवइ लंछणमिसि जिणह ।
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