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________________ September-2005 95 उपाध्याय यशोविजयजीनी गुजराती भक्तिपरक तथा वैराग्य तेमज अध्यात्मपरक गुजराती लघुरचनाओना विशद संचयरूप ग्रन्थ. प्रथम सं. १९९२मां ते प्रगट थयेलो. आ आवृत्ति ते तेना पुनः मुद्रणरूप होवा छतां तेनी सुघड तथा सोहामणी साजसज्जाने कारणे वधु उपादेय लागे छे. तेमां ग्रन्थकारना जीवनप्रसंगोनां रंगीन चित्रो मूकवामां आव्यां छे, जे पुस्तकनी आकर्षकता वधारनार छे. ग्रन्थान्ते सातेक लघुरचनाओ पूर्तिरूपे मूकेल छे, जे सम्पादकना कहेवा प्रमाणे प्रथम ज प्रकाशन पामी छे. आ ७ पैकी 'विमलाचलमंडण ऋषभदेवस्तवन' ए 'अनुसन्धान"-३ मां प्रगट थयानुं अने ते संस्कृत भाषाबद्ध फग्गुकाव्यात्मक रचना होवानुं आ क्षणे सांभरे छे. बन्ने वाचनाओ मेळववानुं रसप्रद बनी शके. ८. द्रव्य-गुण-पर्यायनो रास : (स्वोपज्ञ टबा तथा विवेचन सहित) १-२; रासकर्ता : उपाध्याय यशोविजयजी; विवेचनकार (गुजराती) : पं. धीरजलाल महेता; प्र. जैन धर्म प्रसारण ट्रस्ट, सूरत; ई. २००५, सं. २०६१ जैन संघना घणा घणा अभ्यासीओ, जैन तत्त्वदर्शनना आ ग्रन्थअध्ययन करतां होय छे. आ रास-ग्रन्थ गुर्जर भाषाबद्ध गेय रचना होवा छतां, तेमां जैन दर्शनना गहन तार्किक पदार्थो तथा तेना अनुषंगे अन्य अनेक दर्शनोना भावोनी जे गुंथणी थई छे ते उकेलवानुं तथा भणवानुं अल्पमति जीवो माटे सरल नथीज. ते माटे विस्तृत-विशद विवेचननी आवश्यकता वर्ताती हती, ते आ ग्रन्थ द्वारा पूर्ण थाय छे. खूब उपकारक ग्रन्थ, ९. कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची - १-२-३ खण्ड; प्र. महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा-गांधीनगर, ई. २००४, सं. २०६१ कोबास्थित विशाल हस्तप्रतभण्डारमांनी जैन प्रतिओना वर्णनात्मक अने अद्यतन पद्धतिथी करवामां आवेल सूचिपत्रना दळदार-वजनदार ग्रन्थो. संशोधको तथा अभ्यासीओ माटे अत्युपयोगी प्रकाशन. ___ आर्ट पेपरनो उपयोग ग्रन्थने वजनदार बनावी शके. पण सादा कागळनो उपयोग थाय तो आवा ग्रन्थो अनेक रीते हळवा बनी रहे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520533
Book TitleAnusandhan 2005 09 SrNo 33
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages102
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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