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अनुसन्धान ३२
की और नवांगों पर टीका लिखी। उनके क्रमश: पट्टधर जिनवल्लभसूरि, योगेन्द्र चूडामणि अम्बिका प्रदत्त युगप्रधान पदधारक जिनदत्तसूरि, मणिधारी जिनचन्द्रसूरि, वादी एवं वागीश्वर जिनपतिसूरि, जिनेश्वरसूरि, जिनप्रबोधसूरि, जिनचन्द्रसूरि, शत्रुञ्जय तीर्थ पर मानतुंग विहार के संस्थापक जिनकुशलसूरि, जिनपद्मसूरि, जिनलब्धिसूरि और उनके पट्टधर जिनचन्द्रसूरि हुए। उन श्री जिनचन्द्रसूरि के उपदेश से विहारपुर नगर में रहने वाले वच्छराज और देवराज ने समस्त परिवार समस्त सहित यह मन्दिर बनवाया (१४-३२) ।
भुवनहितोपाध्याय के दीक्षादायक गुरु थे जिनचन्द्रसूरि और शास्त्रों के अध्ययन कराने वाले थे- जिनलब्धिसूरि । उन भुवनहितोपाध्याय ने गच्छनायक के आदेशानुसार विक्रम सम्वत् १४१२ आषाढ वद ६ के दिन इस मन्दिर की प्रतिष्ठा की । यह प्रशस्ति भी भुवनहितोपाध्यायने लिखी है । इस प्रशस्ति को उत्कीर्ण करने वाले ठक्कुर माल्हा के पुत्र सुश्रावक वीधा थे (३३३८) । प्रतिष्ठा के समय भुवनहितोपाध्याय के साथ थे - हरिप्रभगणि, मोदमूर्तिगणि, हर्षमूर्तिगणि और पुण्यप्रधानगणि आदि भुवनहितोपाध्याय ने पूर्वदेशस्थ महातीर्थों की यात्रा की थी ।
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यह प्रशस्ति लेख महोपाध्याय विनयसागर सम्पादित खरतरगच्छ प्रतिष्ठा लेख संग्रह लेखांक ८६ पृष्ठ २२-२३ पर प्रकाशित है ।
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C/o. प्राकृत भारती १३ A. मेन मालवीय नगर जयपुर ३०२०१७
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